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एक अक्षराशिक का विरह-काव्य

ek akshrashiq ka virah kaavy

गौतम राजऋषि

गौतम राजऋषि

एक अक्षराशिक का विरह-काव्य

गौतम राजऋषि

खुलता है यादों का दरीचा

चाँदनी के से अब भी

बचा हुआ है धूप के में प्रेम अभी भी थोड़ा-सा

यादों में चुंबन के से होती है बारिश रिमझिम

और रगों में ख़ून उबलता तेरे ख़्वाबों के से

बाद तुम्हारे जानाँ...

हाँ, बाद तुम्हारे भी जब-तब

तेरी तस्वीरों के से तक एक तराना है

तनहाई का ताल नया है

विरह का राग पुराना है

एक पुरानी चिट्ठी का बैठा है थामे चाहत

स्मृतियों की संदूकी में

तन्हा-तन्हा अरसे से

एक गीत के गुनगुन से हूक ज़रा जब उठती है

कहती है जानाँ तेरा बड़ा ही ज़ुल्मी है

एक कशिश के से निकलती कैसी तो कैसी ये कसक

बुनती है फिर मेरी-तुम्हारी कोई कहानी रातों को

बिना तुम्हारे भी जानाँ...

हाँ, बिना तुम्हारे भी अक्सर

यूँ तो मोबाइल का अब लिखता नहीं कोई संदेशा

उसके में है लेकिन इंतज़ार-सा कोई हर पल

मौसम के पर छाई है हल्की-सी कुछ मायूसी

और हवा का भी हैरत से अब तकता है हमको

इतना भी मुश्किल नहीं है बिना तुम्हारे जीना यूँ

हाँ, जीने का बैठ गया है चुपके से बेचैनी में

और धुएँ के बदले उठती सिसकी सिगरेट के से

ख़ुद के नुक़्ते से रिसती है एक अज़ब-सी ख़ामोशी

और नज़्म के आधे सा हुई ज़िंदगी भी आधी

बाद तुम्हारे जानाँ हाँ, बिना तुम्हारे अब!

स्रोत :
  • रचनाकार : गौतम राजऋषि
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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