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दूर रहा जीवन भर

door raha jiwan bhar

अनिरुद्ध उमट

अनिरुद्ध उमट

दूर रहा जीवन भर

अनिरुद्ध उमट

और अधिकअनिरुद्ध उमट

    उसकी आँखें हरे कँचों-सी चमकी

    जब उसने मुझे बुझती-डूबती साँसों की लहरों में

    सीने से लगाया कि मैं उससे दूर रहा जीवन भर

    तब मैंने देखा उसने कर ली है तैयारी अंतिम यात्रा की

    अभी चूल्हा ठंडा है

    रसोई में हम माँ-बेटा उसमें फूँक मारेंगे

    कटोरदान में तीन दिन पुरानी रोटी फूल जाएगी

    अभी उसके गहनों में देवता अपना शृंगार करेंगे

    अभी उसकी चप्पलों में मेरी बेटी की नींद का पैर है

    अभी बीस साल पहले मरा बेटा

    चालीस साल पहले लापता उसका भाई

    उसे थाली परोसने का कहेंगे

    अभी

    अभी

    अभी

    अभी

    अभी

    थाली पर बैठे पिता थाली पर लुढ़क जाएँगे

    अभी

    अभी

    अभी

    अभी

    अभी

    पत्नी से बातें करता मैं अँधेरे आँगन में छाती के बल जा गिरूँगा

    अभी

    अभी

    अभी

    अभी

    अभी

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनिरूद्ध उमट
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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