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धूसर गोधूलि में देखी हुई धुँधली आकृतियाँ

dhusar godhuli mein dekhi hui dhundhli akritiyan

अनुवाद : दिनकर सोनवलकर

दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

धूसर गोधूलि में देखी हुई धुँधली आकृतियाँ

दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

और अधिकदिलीप पुरुषोत्तम चित्रे

    धूसर, गोधूलि में देखी हुई धुँधली आकृतियाँ

    और उनकी रहस्यमय हलचलें

    आँखों में फैलती हैं

    और आँखों को भूलती हैं।

    पग-पग पर कितने ही रास्ते फूटते हैं

    मन की इच्छाओं के कितने ही प्रारूप

    होते हैं अर्थहीन

    कैसा अजीब सुन पड़ता है

    कोलाहल के बीच

    पक्षियों का बेवक़्त चहचहाना?

    अब तो चाहिए केवल ऐसी हृदयहीनता

    ऐसी जड़ता

    जिसकी रिक्तता किसी भी स्वर से भर जाए;

    नहीं चाहिए उर के स्पंदन

    या पीड़ा के छंद अब।

    आकाश भी छोटा पड़े,

    ऐसा सूक्ष्म नाद।

    चाहिए मुझे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 66)
    • रचनाकार : दिलीप पुरुषोत्तम चित्रे
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1965

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