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ढूँढ़ना, मिल जाऊँगा

DhunDh़na, mil jaunga

कुशाग्र अद्वैत

कुशाग्र अद्वैत

ढूँढ़ना, मिल जाऊँगा

कुशाग्र अद्वैत

और अधिककुशाग्र अद्वैत

    ढूँढ़ना, मिल जाऊँगा

    एक अरसे से

    चाहता रहा हूँ खोना

    अगर, खो ही गया कभी

    गुमशुदगी की रपट-वपट मत लिखाने लगना

    कोर्ट-कचहरी, थाना-पुलिस से

    हमेशा रहा हूँ बचता

    यह सब बिल्कुल नहीं जँचता

    ढूँढ़ना

    मिल जाऊँगा,

    कहाँ चला जाऊँगा?

    कितना खो पाऊँगा?

    कितना खो पाया है कोई!

    स्वदेश दीपक नहीं मिला यार

    लेकिन, वह खोए बग़ैर भी खोया था

    वह खो सकता है,

    फिर कभी नहीं मिलने जितना

    मैं स्वदेश दीपक तो नहीं

    मैं ज़रूर मिल जाऊँगा

    तुम्हारी आसानी के लिए बता दूँ―

    शहर में मकान हैं

    कुछ प्रेमिकाओं के

    जहाँ जाता रहा हूँ गुपचुप

    खोने के लिए

    आदतन एकाध बार पहले भी खोया हूँ

    तब वहीं से हुआ हूँ बरामद

    दो-चार दोस्त हैं

    उनसे भी कर लेना दरयाफ़्त

    बस, उन्हें बेजा हैरान मत करने लगना

    यूनिवर्सिटी का कोई कोना छोड़ना

    कुछेक प्रोफ़ेसर के यहाँ भी देखना

    ढूँढ़ना,

    मिल जाऊँगा

    कहाँ चला जाऊँगा

    बनारस, इलाहाबाद, लखनऊ,

    दिल्ली, कलकत्ता के आस-पास ही

    होऊँगा कहीं

    अगर नहीं मिलूँ वहाँ

    तब, जिस भी शहर के किनारे बहती मिले

    कोई सँवलाई नदी

    उस शहर के हर चौक पर ढूँढ़ना

    एक भाषा है

    थका-हारा जाता हूँ सुस्ताने

    जिसकी गोद में,

    उस परतदार भाषा की

    हर परत में मुझको

    विधिवत ढूँढ़ना

    ऐसे बताता जा रहा हूँ अपना एक-एक ठिकाना

    मानो इसलिए चाहता होऊँ खोना

    कि ढूँढ़ ले कोई!

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुशाग्र अद्वैत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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