धर्म बनिए का तराज़ू बन गया है
dharm baniye ka tarazu ban gaya hai
सबके पास धर्म के नाम पर
हाथों में उस बनिए का तराज़ू हैं
जो अपने अनुसार तौलता है
धर्म के असली दस्तावेज़ तो
उसी दिन अपनी जगह से
खिसक गए थे जिस दिन
स्वार्थ को अपना धर्म
बेईमानी को अपना कर्म
चालाकी को अपना कौशल समझ
इंसानियत के खाते में दर्ज़ किया था।
- रचनाकार : सरिता सैल
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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