अबही बनी हैं बात औसर समझ घात
abhi bani hain baat ausar samajh ghat
अबही बनी हैं बात औसर समझ घात,
तउ न खिसात बार सौक समझायौ है।
आज काल जैहै मर काल ब्याल हू ते डर,
भौंडे! भजन कर कैसौं संग पायौ है॥
चित वित इत देह सुखहि समझ लेह,
सरस गुरु ग्रंथ पंथ यों बतायौ है।
चरन सरन भय हरन करन सुख,
तरन संसार को तू मान सब नायौ है॥
- पुस्तक : कल्याण पत्रिका (संतबानी अंक) (पृष्ठ 291)
- संपादक : हनुमान प्रसाद पोद्दार
- रचनाकार : सरसदेव
- प्रकाशन : गीता प्रेस गोरखपुर
- संस्करण : जनवरी 1955
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