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देह

deh

अनीता वर्मा

और अधिकअनीता वर्मा

    एक देह को चलते या जागते देखना किसी आश्चर्य से कम नहीं

    जो गंध और स्पर्श का घर होते हुए भी उसके पार का माध्यम है

    देह रूप है इसकी एक अलग भीतरी भाषा है

    बीतते दिनों के चलित व्यापार में यह सिर्फ़ ऊपर से जागती है

    इसकी आत्मा उस समय भी खोज रही होती है अपना स्पंदन

    यह एक विकल प्रतीक्षा है जिसकी निरंतरता में सोई पड़ी रहती है देह

    इसके भीतर निवास करते हैं कई जंगल,

    गुफ़ाएँ निविड़ जगहें

    बहुत भीतर कहीं मंद प्रकाश में पड़ा होता है प्रेम

    कई जगहें हैं जहाँ प्रवेश वर्जित है

    इन तक पहुँचने का पता भी हमें मालूम नहीं होता

    पुनर्जन्म को भी मानें तो इसी जन्म में सत्य हो सकती है देह

    जब यह स्फुरित हो कोमल हो जाए पँखुरियों की तरह

    प्रक्षेपित हो कहीं समूची

    उसी क्षण यह जन्म लेती है और उसी क्षण होती है इसकी मृत्यु

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक जन्म में सब (पृष्ठ 13)
    • रचनाकार : अनीता वर्मा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2003

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