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धनतेरस, अम्मा और सिल्वर

dhanteras, amma aur silwer

अखिलेश सिंह

अखिलेश सिंह

धनतेरस, अम्मा और सिल्वर

अखिलेश सिंह

...और एक नया बरतन आएगा

अम्मा जिसे सिल्वर कहती हैं

और मैं अलमुनियम

मेरे लिए सिल्वर चाँदी है

अम्मा के लिए चाँदी ही चाँदी है

उनके लिए हर सुखद चीज़ चाँदी है

उनकी कहावतों में चाँदी है

उनके सोने की नथ का तरल्ला भी चाँदी है

उनकी साँसें चाँदी हैं

उनके साबूत दाँत चाँदी हैं

चाँदी हैं उनके धूप में नहीं पके सुफ़ेद बाल

वह कहती हैं कि बछिया के माथे पर चाँदी है

मोर की चुर्की में भी चाँदी है

चाँदी का एक पनडब्बा भी था उनका

जिसे तुड़वाकर बड़की पतोहू की करधन बनी

तो

एक नया बरतन आएगा

अम्मा उसे टुनकारेंगी

उसके मुँह में हाथ डालकर नचाएँगी

फिर कहेंगी कि

सिल्वर हल्का होता है

हाथ टूट जाता था पीतल के बड़के भदीले

हुमासकर इधर से उधर करने में

पका भात उतारने में

उनका यह कहना उनकी बातों से ज़्यादा उनकी आँखों में है

वह फिर कहेंगी

कि सिल्वर छूटता है और बीमारी का घर है

मुला, पीतल ख़रीदना अब किसके बस का है

वह रंगोलिया से कहेंगी

कि ले एक चुटकी चीनी और

पहिलो-पहिल इसमें डाल दे

आज बरस-बरस का दिन है—

भात चढ़ा दे।

स्रोत :
  • रचनाकार : अखिलेश सिंह
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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