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रविवार

rawiwar

महेश वर्मा

महेश वर्मा

रविवार

महेश वर्मा

और अधिकमहेश वर्मा

    रविवार को देवता अलसाते हैं गुनगुनी धूप में

    अपने प्रासाद के ताखे पर वे छोड़ आए हैं आज

    अपनी तनी हुई भृकुटी और जटिल दंड-विधान

    नींद में मुस्कुराती किशोरी की तरह अपने मोद में है दीवार-घड़ी

    ख़ुशी में चहचहा रही है घास और

    चाय की प्याली ने छोड़ दी है अपनी गंभीर मुख-मुद्रा

    कोई आवारा पहिया लुढ़कता चला जा रहा है

    वादियों की ढलुआ पगडंडी पर

    यह ख़रगोश है आपकी प्रेमिका की याद नहीं

    जो दिखा था, ओझल हो गया रहस्यमय झाड़ियों में

    यह कविता का दिन है गद्य के सप्ताह में

    हम अपनी थकान को बहने देंगे एड़ियों से बाहर

    नींद में फैलते ख़ून की तरह

    हम चाहेंगे एक धुला हुआ कुर्ता-पायजामा

    और थोड़ी-सी मौत।

    स्रोत :
    • पुस्तक : धूल की जगह (पृष्ठ 40)
    • रचनाकार : महेश वर्मा
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2018

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