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लंबी छुट्टियाँ

lambi chhuttiyan

प्रदीप्त प्रीत

प्रदीप्त प्रीत

लंबी छुट्टियाँ

प्रदीप्त प्रीत

और अधिकप्रदीप्त प्रीत

     

    एक

    मैं इंतज़ार में हूँ
    उन आधा दर्जन छुट्टियों के
    जो आती हैं साल में दो बार

    हाँ, मैं मानता हूँ
    एक ही साल में दो को चार में बदलता हूँ
    उपयोग करता हूँ इंटर के गणित का
    ख़ैर, मैं इंतजार में हूँ

    जब मैं आऊँगा तुम्हारे पास
    मैं और तुम घूमेंगे अपने संसार में
    जहाँ रहती हैं तितलियाँ
    धान की बालियाँ
    अरबी के पत्ते पर गिरी ओस की बूँदें
    और हवा में बेलौस उड़ते कुछ सफ़ेद फूल

    घास और कीचड़ से सनी पगडंडियों पे
    दो जोड़ी पैर छोड़ेंगे निशाँ
    उधर नहर की मोरी पे बैठेते ही
    नज़रें झुकाए
    तुम उन पायलों को चमकाने लगोगी
    जो धूमिल और मंद हैं
    कीचड़ के संपर्क में आने से

    फिर तुम्हारी नेमत बरसेगी
    तुम्हारे पावों और तुम्हारे पैरहन पर
    मैं निठल्ला अपलक देखता रहूँगा
    तुम्हें और तुम्हारी तल्लीनता को।

    दो

    मैं इंतज़ार में हूँ
    उन दिनों के
    जिनकी रातें मशहूर हैं
    पूस की रात के नाम से

    ये दिन लाते हैं
    अकेले अंक का तापमान
    अपनी रातों जैसी लंबी छुट्टियाँ
    सेठ के कोड़ों से छिल चुकी पीठ के लिए
    शानदार पुवाल के बिस्तर

    दो-चार सवारी गाड़ियों को छोड़ते-पकड़ते
    हरे-पीले हो चुके खेतों को निहारते
    मैं फिर आऊँगा अपने गाँव
    उन्हीं पगडंडियों पे तुमसे मिलने
    जहाँ हर बार बदलते हैं हम टिफ़िन
    और घर वाले खोजते रह जाते हैं
    मेरे पैदल आने का कारण

    इन दिनों हमारी मुलाक़ातें
    कम और छोटी हो जाएँगी
    सूरज की बढ़ती-घटती रोशनी के साथ ही
    इक्का-दुक्का लोग चले आएँगे वहाँ—
    जहाँ तुम मुझे बैठा देती हो
    शिकायतों के ढेर पर

    ऊन में लिपटी सलाइयों की व्यस्तता में
    तुम सुनना चाहोगी
    कोई वाजिब जवाब
    मैं स्तब्ध अपने पैर के अँगूठे से
    पृथ्वी को कुरेदता रहूँगा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रदीप्त प्रीत
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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