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दशरथ माँझी

dashrath manjhi

निर्मला गर्ग

निर्मला गर्ग

दशरथ माँझी

निर्मला गर्ग

और अधिकनिर्मला गर्ग

     

    प्रेम का मर्म समझा एक ग़रीब आदिवासी ने
    पहाड़ काटकर रास्ता बनाया उसके अथक परिश्रम ने

    हाँ, दशरथ माँझी* है 
    दशरथ माँझी लेकिन ताजमहल के बारे में नहीं जानता 
    प्रेम का महान प्रतीक-चिह्न है ताजमहल 
    विश्व भर से लोग जिसे देखने आते हैं
    पत्नी या प्रेयसी के संग संगमरमर की बेंच पर बैठकर 
    तस्वीर अवश्य खिंचवाते हैं

    दशरथ माँझी लेकिन इस ताजमहल के बारे में नहीं जानता 
    आश्चर्य है, प्रेम का मर्म समझने वाला दशरथ माँझी 
    ताजमहल को नहीं जानता!
    सचमुच बहुत ख़ूबसूरत है ताजमहल!
    देखने वालों के मन में बिंध जाती है इसकी कारीगरी 
    हो सकता है दशरथ माँझी ने इसे एक मक़बरा ही समझा 

    ताजमहल बनवाने में शाहजहाँ ने ख़ाली कर दिया ख़ज़ाना 
    कटवा दिए शिल्पियों के हाथ 
    जिससे वे इतनी भव्यता दोबारा न रच सकें
    ताजमहल के जिस्म से झलकता प्रेम 
    इतना ख़ुदग़र्ज़ 
    इतना क्रूर क्यों है?
    दशरथ माँझी ने बकरियाँ ख़रीदी है छैनी-हथौड़ी 
    जानता है वह प्रेम को पहाड़ काटकर बनाए 
    रास्ते के रूप में 
    जिस पर चलकर बीमार पड़ने पर औरतें
    अस्पताल समय पर पहुँचती हैं
    सौदा-सुलुफ लाने ग्रामीण हाट जल्दी जा पाते हैं

    साठ गाँवों को आवागमन सुलभ करता है यह रास्ता 
    जीवन से बहुत-बहुत भरपूर है यह रास्ता।
    _____________________________________
    *दशरथ माँझी की बीमार पत्नी अस्पताल पहुँचने से पहले ही गुज़र गईं। इसकी वजह गाँव से अस्पताल जाने की दूरी/रास्ता था। दशरथ अपनी पत्नी से बेहद प्रेम करते थे। उन्होंने संकल्प लिया पहाड़ तोड़कर रास्ता बनाने का।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दिसंबर का महीना मुझे आख़िरी नहीं लगता (पृष्ठ 39)
    • रचनाकार : निर्मला गर्ग
    • प्रकाशन : बोधि प्रकाशन
    • संस्करण : 2012

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