तारों को कभी शुक्रिया नहीं कहा
taron ko kabhi shukriya nahin kaha
श्रीधर करुणानिधि
Shreedhar Karunanidhi
तारों को कभी शुक्रिया नहीं कहा
taron ko kabhi shukriya nahin kaha
Shreedhar Karunanidhi
श्रीधर करुणानिधि
और अधिकश्रीधर करुणानिधि
अँधेरे को कम करने में
जो भी भूमिका निभाई हो उन्होंने
हमने कभी नहीं कहा
आँखों जितनी रोशनी के लिए एक भी शब्द
और उनका भी क्या
जिन्हें अँधेरे के लिए पता हो
कि घने बादल की मोटी परतों को छीलकर
कोई रास्ता नहीं बनाता...
बाज़ार सजे थे
प्रशंसा में शब्दों की फ़िजूलख़र्ची के
क्योंकि हमें भी लत लग गई
किसी तीसमार खाँ चाँद की
क्योंकि हमें नहीं समझाए गए
अँधेरे और उजाले की पहचान के तरीके
और उजाले के भ्रम जाल में
भेड़िए की तरह अँधरे के तेवर
हत्यारे के तीखे नाख़ून-से धंसते हैं
कंठ को चीरकर आवाज़ को पत्थरों के नीचे
दबाकर...
आपको शायद चीखने वाले हत्यारे पर तरस आए
क्योंकि आप कहें कि नहीं!
कुछ भी हो पर ये नहीं हो सकता
कि उजाले की शक्ल वाला कोई इस तरह...
ओह! हमने तारों को कभी शुक्रिया नहीं कहा...
- रचनाकार : श्रीधर करुणानिधि
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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