यह भरतनाट्यम का एक पोज़ नहीं है
ye bharatnatyam ka ek poz nahin hai
रोचक तथ्य
यह कविता प्रसिद्ध अँग्रेज़ी लेखिका अरुंधति रॉय के लिए, जो कहती हैं : “मेरी दुनिया मर गई है। मैं उसका मार्सिया लिख रही हूँ।” जीशा भट्टाचार्य एक स्कूल-छात्रा है, जो मेरे स्कूल में दसवीं में पढ़ती है और भरतनाट्यम करती है। उसकी माँ मुझे उसकी एक फ़ोटो देती हैं जिसमें जीशा अपनी उस बहन के साथ है जो चलने-फिरने मे असमर्थ है। यह कविता जीशा के भरतनाट्यम और उसके जज़्बे पर आधारित है।
तुम समय के खिलंदड़ेपन से अंजान
समय में ताल भरने के निमित्त
भर देती हो कुछ ध्वनि
जबकि तुम अपनी बेहद सुंदर आँखों से
गोल-गोल देखती हो दुनिया
कभी कह नहीं सकती हो, कि—
“मेरी दुनिया मर गई है।
मैं उसका मार्सिया लिख रही हूँ।”
इस समय में
जबकि टेलीविज़न से चलने वाली गोली ने
छलनी कर दी संगीत की छाती
और तुम गा रही हो...
“मधुकर निकर करम्बित कोकिल...’’
जब नृत्य करने वाले पाँवों को काटकर
बाज़ार में बेचा जा रहा है
तुम भरतनाट्यम के एक पोज़ में
थिरका देती हो पाँव
तुम्हें नृत्य करना है—ताउम्र
गाना है—ताउम्र
अबकी अरुंधति रॉय से कहीं भेंट हुई तो कह दूँगा :
किसी की दुनिया आसानी से नहीं मरती
जिसकी शिनाख़्त पर मार्सिए की क़वायद हो
और एक लड़की ने
चौदह साल की उम्र में ठान लिया है कि
वह अपनी दुनिया में जमके जिएगी
एक ऐसी दुनिया गढ़ेगी जिसमें
गा सके खुलेआम
निःस्वार्थ कर सके भरतनाट्यम
शायद उसके बुलंद हौसले को मिल ही जाए मंज़िल
वैसे शुक्रिया मेरी बच्ची
मैं गर्व से कहता हूँ कि
ईश्वर की कोई औक़ात है तो
मुझे ही नही,
हर किसी को
एक बिटिया ऐसी ही दे जो बिल्कुल इसी की तरह हो
बिल्कुल इस लड़की की तरह...
गीत जिसका शौक़
नृत्य जिसकी मंज़िल...
- रचनाकार : अरुणाभ सौरभ
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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