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रेत और नृत्य

ret aur nritya

अनिल मिश्र

अनिल मिश्र

रेत और नृत्य

अनिल मिश्र

और अधिकअनिल मिश्र

    अब तेज़ हवा चलने लगी है

    उड़ने लगी है एकदम सूखी रेत

    रेत गिरने लगी है खड़ी फसल पर

    रेत खिले हुए फूलों पर गिर रही है

    रेत घर में गिर रही है दरवाज़े पर गिर रही है

    चूल्हे और थाली में गिर रही है रेत

    रेत सूरज पर गिर रही है

    चाँद पर गिर रही है

    रेत के कन रेत के कणों पर गिर रहे हैं

    मरुथल के इस आसमान में उड़ने लगे हैं रेत के बादल

    दुख बरस रहे हैं और मौत चमक रही है

    ये देखो, आज एक और झुँड कुरजों का

    छोड़कर झील पलायन कर रहा इस देश से

    बिल से निकल कर लहराते हुए

    अपने फ़न

    टीले-टीले नाचेगा साँप

    और नाचेंगी कालबेलिया स्त्रियाँ

    मृत्यु के मन में भय पैदा करेंगी

    बाजरा नाचेगा सारा दिन

    ज्वार नाचेगा सारी-सारी रात

    जी छोटा करते तालाबों पर नाचेंगे

    पीतल और मिट्टी के घड़े

    ऊँट के गले में प्यास सो जाएगी नाचती-नाचती

    एक कलाकार की मूछें नाचेंगी

    और दूर उठते ग़ुबार को देख

    नर्तकी के सिर के ऊपर

    जलते दीओं की नाचती लौ

    थार के नाचने की घोषणा करेगी

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनिल मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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