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सुनो ब्राह्मण

suno brahman

मलखान सिंह

मलखान सिंह

सुनो ब्राह्मण

मलखान सिंह

 

एक

हमारी दासता का सफ़र
तुम्हारे जन्म से शुरू होता है
और इसका अंत भी
तुम्हारे अंत के साथ होगा।

दो

सुनो ब्राह्मण
हमारे पसीने से
बू आती है तुम्हें।

फिर ऐसा करो
एक दिन
अपनी जनानी को
हमारी जनानी के साथ
मैला कमाने भेजो।

तुम! मेरे साथ आओ
चमड़ा पकाएँगे
दोनों मिल बैठ कर।

मेरे बेटे के साथ
अपने बेटे को भेजो
दिहाड़ी की खोज में।

और अपनी बिटिया को
हमारी बिटिया के साथ
भेजो कटाई करने
मुखिया के खेत में।

शाम को थक कर
पसर जाओ धरती पर
सूँघो ख़ुद को
बेटे को
बेटी को
तभी जान पाओगे तुम
जीवन की गंध को,
बलवती होती है जो
देह की गंध से।

तीन

हम जानते हैं
हमारा सब कुछ
भौंड़ा लगता है तुम्हें।

हमारी बग़ल में खड़ा होने पर
क़द घटा है तुम्हारा
और बराबर खड़ा देख
भवें तन जाती हैं।

सुनो भूदेव
तुम्हारा क़द
उसी दिन घट गया था
जिस दिन कि तुमने
न्याय के नाम पर
जीवन को चौखटों में कस
कसाई बाड़ा बना दिया था।
और ख़ुद को शीर्ष पर
स्थापित करने हेतु
ताले ठुकवा दिए थे
चौमंज़िला जीने से।
वहीं बीच आँगन में
स्वर्ग के—नरक के
ऊँच के—नीच के
छूत के—अछूत के
भूत के भभूत के
मंत्र के तंत्र के
बेपेंदी के ब्रह्म के
कुतिया, आत्मा, प्रारब्ध
और गुण-धर्म के
सियासी प्रपंच गढ़
रेवड़ बना दिया था
पूरे के पूरे देश को।

तुम अक्सर कहते हो कि
आत्मा कुआँ है
जुड़ी है जो मूल-सी
फिर निश्चय ही हमारी घृणा
चुभती होगी तुम्हें
पके हुए शूल-सी।
यदि नहीं—
तुम सुनो वशिष्ठ!
द्रोणाचार्य तुम भी सुनो!
हम तुमसे घृणा करते हैं।
तुम्हारे अतीत
तुम्हारी आस्थाओं पर थूकते हैं।

मत भूलो कि अब
मेहनतकश कंधे
तुम्हारा बोझ ढोने को
तैयार नहीं हैं
बिल्कुल तैयार नहीं हैं।

देखो!
बंद क़िले से बाहर
झाँक कर तो देखो
बरफ़ पिघल रही है।
बछेड़े मार रहे हैं फ़ुर्री
बैल धूप चबा रहे हैं
और एकलव्य
पुराने जंग लगे तीरों को
आग में तपा रहा है।

स्रोत :
  • पुस्तक : दलित निर्वाचित कविताएँ (पृष्ठ 48)
  • संपादक : कँवल भारती
  • रचनाकार : मलखान सिंह
  • प्रकाशन : इतिहासबोध प्रकाशन
  • संस्करण : 2006

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