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धनबर और रतनी

dhanbar aur ratni

अनुवाद : नवारुण वर्मा

लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ

लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ

धनबर और रतनी

लक्ष्मीनाथ बेजबरुआ

और अधिकलक्ष्मीनाथ बेजबरुआ

    आई उजान* में भाठी* की रतनी

    ह्दय-माधुरी लेकर

    फिर भाठी का ले गई सभी सार

    मेरे लिए छोड़ छिलके भर।

    कहाँ की तू रतनी चुड़ैल, कहाँ निवास?

    कूट-खोरनी तू कैसी?

    लूटा सब कुछ, मारा धनाई को

    ज़िंदा रहना अब हो कैसे?

    पर्वत-पर्वत पर चढ़ जा सकता

    मुश्किल है बेल पर चढ़ना।

    प्रिय रतनी को कर सकता वशीभूत

    मुश्किल है माँ को समझाना।

    वे सफ़ेद बगुले उड़े जाते कैसे

    पंखों से पंख सटाए

    किसके लिए उड़े भला अब दीन यह धनबर

    साथ नहीं रतनी जो आए।

    हहराता लहराता बहता है लोहित

    सरकंडों की झाड़ ले छाती पर

    छाती सूनी कर चली गई मेरी रतनी

    बह जाऊँ आज मैं किसे लेकर

    झोंका मार जाता जो पूरब का पछवा

    धान में लगा जाता सीस

    धनाई के मन को झोंका मार रतनी

    मन में बसा गई शोक।

    गंगा में उड़ी वो, 'गंगा-चील' वह

    रेत में उड़ा वह घोड़ा—

    नाव के सिंदूरी सिरे पर बैठी रतनी

    निकल गई धनाई से दूर।

    चिड़िया ने जने बारह जोड़े बच्चे

    सुंदर बन गई पेड़ की डाली

    बनाकर धनाई को काल-शत्रु

    पाला रतनी को, माँ-बाप ने, आली।

    लोहित के सोंस, तू झट से डुबकी मार गया

    ऊपर निकल, फिर से एक बार

    धनसिरी की रतनी झट से डुबकी मार गई

    तोड़ मेरी रीढ़ की हाड़

    रेत पर चर रहे वे दो खंजन

    संग-संगिनी पाकर

    तट पर बैठा वह रोता दुखिया धनबर

    संग नहीं रतनी, लाचार।

    'फुटुका' पौधे तले वह चुड़ैल लड़की

    टुक-टुक तालियाँ बजाती

    धनाई के साये तले नहीं रे रतनी

    अब कौन देखे चेहरे को साथी?

    नदी किनारे किसका यह छोड़ा घर-बार?

    टूट-टूट गिरे मिट्टी की कगार

    लोहित-तट पर किसका वह धनबर,

    रतनी के शोक की आग में जलता?

    चली जा रतनी, मत आना मत आना

    मेरी खोज में अब मत आना बेकार

    तेरा धनबर भिखारी से भी दीन-भिखारी

    धरती पर रख जाएगा शोक-भार।

    मेरे लोहित, अपना ले मुझे भी

    गोद में दे दे जरा-सा ठौर

    जबकि रतनी खो गई मेरी, अंत हो गया सब कुछ।

    अब तो रहा, मेरा कुछ और।

    *उजान : नदी की धारा की वह दिशा, जिधर से धारा आती है।

    *भाठी : उजान की विपरीत दिशा, जिधर धारा बहती जाती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बेजबरुआ की चुनी हुई रचनाएँ (पृष्ठ 26)
    • रचनाकार : बेजबरुआ
    • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
    • संस्करण : 2008
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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