Font by Mehr Nastaliq Web

बस अड्डे का चिनार

bus aDDe ka chinar

मरग़ूब बानिहाली

मरग़ूब बानिहाली

बस अड्डे का चिनार

मरग़ूब बानिहाली

और अधिकमरग़ूब बानिहाली

    बस अड्डे का चिनार

    अजब कि अभी जीवित खड़ा है

    नहीं तो उसकी जीवन रेखा

    कब की अवरुद्ध हो गई है

    घेर लिया है

    चारों ओर से

    इसे इस तरह तारकोल ने

    कि साँस लेना तक मुश्किल होता होगा!

    कल तक तो यह था पूरा हरा

    अपने भव्य आकार में खड़ा

    पसारता हुआ शीतल छाया

    पर अब हरियाली की जगह

    बजरी का थड़ा बनाकर

    किसने इसे घेर लिया है

    जैसे तने पर पहरा बिठा दिया हो

    कंकड़ पत्थर ने

    कि बारिश की बूँदों को भी

    जैसे हो मना उसकी तह तक पहुँचना।

    अदृश्य हाथों ने

    सोख ली है

    इसके लिए भूतल की नमी

    और समीप बहती सखी वितस्ता भी

    कोई आर्द्रता नहीं पहुँचा सकती।

    बस अड्डे में खड़ा अड़ा हुआ

    यह चिनार

    पता नहीं किसका कर रहा है इंतज़ार

    पता नहीं क्या सोचकर रो रही है यहाँ

    ग्रीष्म की ओस

    लहू के आँसू

    कुछ तो बात होगी

    वरना यूँ ठिठक गया होता

    डल झील का पानी।

    एक युग बीता

    जब 'ऋषिमोल' ने रोपा था

    यह चिनार यहाँ

    पर अब किससे पूछे

    किसे होगी याद

    ऋषि की वसीयत।

    क्या टूटेगा अब यहाँ

    वसीयत में दर्ज विश्वास

    समय का शुभ शीतल संदेश!

    कहा था उसने

    वन रहेंगे सुरक्षित

    तभी उपजाएगी यह धरा अन्न

    और यह चिनार ही अब वह पैग़ाम था

    कि इसकी ही छाया में

    पाते थे सकून

    अनगिनत थके हुए कारवाँ।

    ग्रीष्म में

    जिसकी छाया

    ढाल बन जाती थी

    वही चिनहार

    शिशिर में

    आँधियों को रोक लेता था

    और वसंत में

    आकांक्षाओं के प्रस्फुटन की

    प्रेरणा बन जाता

    पतझर में

    इसके दमकते हुए पत्तों की आग में

    उष्णता पा लेता हमारा अंतःकरण।

    आज यह किस दृष्टि से

    बदली है हमारी पहचान

    कोई क्यों नहीं करता आत्मावलोकन

    कोई क्यों नहीं पूछता

    क्या इसी तरह सूख जाएगा यह चिनार उपेक्षित?

    जगती क्यों नहीं

    अब यहाँ यारों में

    सौंदर्य की अनुभूति?

    विश्वास नहीं होता कि हम सब कुछ

    भूल गए हैं।

    जीवन की आपा-धापी में

    किसे याद है

    आत्मा

    हाय!

    इस बजरी के चौंतरे ने

    बँधवा बना दी है हमारी सोच

    अन्यथा

    कौन होगा जो इस तरह भूल जाएगा

    कि चिनार की शीतल छाया ही

    हमारी अस्मिता है।

    हमारे पुरखों ने

    जो पेड़ रोपे थे

    छायाएँ बाँटने के लिए

    हाय!

    उन्हें ही काटने में लगे हैं

    ये लकड़हारे हाथ!

    खेद है

    'ऋषिवाटिका' में भुला दिया गया

    ऋषियों को ही।

    वे जो प्रतीक थे हमारे

    उन्होंने कभी हमारे भविष्य का

    सौदा नहीं किया

    गिरवी नहीं रखना पड़ा था

    उन्हें घर

    किसी व्यापारी के पास

    पेड़ ही नहीं थे

    उनके लिए कमाई का साधन

    ही कोई पेड़

    उपेक्षित होकर सूख जाता

    तब यदि कोई पेड़

    सूख भी जाता था ऋषिवाटिका में

    पर स्नेह उनकी जड़ों का

    सूखता नहीं था।

    इस तरह तारकोल

    उनके तने झुलसा नहीं देते थे।

    उन दिनों पेड़ों की चोटियों पर

    गिरती भी थी विषैली गाज

    तो धरती का दुलार

    बचा लेता था

    उनके जीवन का आधार।

    सुदूर गाँव में

    जैसे माँ या बाप मर जाएँ

    तो अनाथ बच्चों का

    पालन-पोषण करता है

    आज भी ननिहाल का प्यार

    हे चिनार!

    हमसे जो छिन गया

    माँ का साया

    तुम वही माँ बनकर

    हमें रख अपनी छाँह में।

    जानते हैं

    हम तुम्हारे हैं अयोग्य पुत्र

    तुम्हारी अवमानना कर

    बदनाम हैं

    पर बदली नहीं फिर भी

    तुम्हारी छाया

    सबके लिए

    रही यथावत्

    क्या अच्छा क्या बुरा।

    तुम्हारी डालियों पर

    मिला पंछियों को भी विश्राम

    चाहे हो 'पोशनूल'

    या कोई 'जल' पक्षी

    या कोई कौआ

    अथवा गिद्ध

    पर हमसे जो हुई भूल

    हमारी स्नेहशील माँ!

    वह अक्षम्य

    अब हमें तुम्हारी छाया का

    क्या अधिकार

    हमने स्वयं

    छोटा किया अपना क़द

    चुप्पी भीतर-ही-भीतर घुटती है

    कैसे कहें

    अपनी संतान को

    कि झुलस जाएगी उनकी भी मज्जा

    कैसे कहें

    कि संस्कृति ही है

    जीवन का उत्थान

    कहाँ गए वे जिन्हें देखकर

    प्रसन्न होता था चिनार

    पर आज हमें देखकर

    क्यों हैं उसे घुटन?

    क्या ठंडा पड़ गया है

    हमारे भीतर का ताप?

    और जम गया है

    आँखों का प्रकाश!

    हमें यह क्या हुआ है

    हमारी माँ गिन रही है

    अपनी अंतिम साँसें

    पर अफ़सोस

    हम इकट्ठे नहीं हो रहे हैं

    अपनी स्नेहिल माँ की

    अंतिम इच्छा का मान रखने।

    हमारे सिवा

    कौन है इसका

    पर हम क्यों नहीं समझ पाते?

    कितनी पीड़ा

    कितनी तड़प

    उसने छिपा रखी होगी भीतर

    और कौन उसे पिलाता होगा जल?

    तब वह हमारे बारे में

    क्या-क्या सोचती होगी?

    सोचो तो ज़रा

    हम हैं उसकी संतान

    पर हमारा यह दावा

    सच है क्या?

    यदि नहीं बचा पाए हम

    प्यार का यह मिलनकुंज

    स्नेह के स्पर्श से

    एकता के बल से

    कि यह चिनार हमारे लिए

    ममता का साया है

    हमारे परस्पर सौहार्द का प्रतीक है।

    सूख गया अगर

    बस अड्डे का चिनार

    तो सूख मर नहीं जाएगी हमारे सीने में

    स्नेह की धारा?

    आवरणहीन हो जाएगा हमारा ज्ञान!

    चिनार

    हमारे पहचान की चेतना है

    आँखों का नूर

    दिल की धड़कन

    आज हमें मिली चुनौती

    क्या हम बचा सकेंगे

    इसकी अस्मिता?

    कि स्नेह का पर्याय है

    यह चिनार।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उजला राजमार्ग (पृष्ठ 117)
    • संपादक : रतनलाल शांत
    • रचनाकार : मरग़ूब बानिहाली
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2005
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए