अहं का उद्भव
ahan ka udbhav
मरे हुए मुँह कहते हैं कि आदमी रोशनी बदलने के दौरान आया।
नाव उसका जिस्म थी और दो ताक़तवर डाँड़ उसकी बाँहें।
अकेला, उफ़नते सागरों के जलडमरूमध्य से होकर आया
आदमी एक रोशनी था, मरे हुए कहते हैं;
समस्त विलुप्त इतिहास से पहले, और आगामी सार्वकालिक समय से
बहुत पहले।
उनका कहना है कि वह पहाड़ की तरफ़ जा रहा था
और पार्श्वचित्र में उसके ताक़तवर हाथ हरदम हवा में मार करते
नज़र आते थे।
वह अकेला था, और मणिभ, सोना उसकी नाव से गिर रहे थे,
अपनी तसल्ली तक उसने हरेक रची गई वस्तु का धड़ गढ़ा।
तट के साथ-साथ, मटमैले झाड़-झंखाड़ में,
राख या धुआँती हुई सड़ी लाशें, खंडहर।
अरे, मरे हुए जो क़िस्सा सुनाते हैं वह यह कि
पहाड़ का, ख़ुद आदमी का,
जन्म समुद्र पर हुआ।
किंतु जब वह अपने स्वयं के केंद्र पर पहुँचा
तो अब वह आदमी नहीं था;
वह आदि वृक्ष था, उसकी शाखें असंख्य डाँड़,
उसका तना समान शक्ति वाली अनेक नावें
सोने के एक गोलाकार फूल में संयुक्त।
अपने सामने, अग़ल-बग़ल और अपने पीछे
उसने पहाड़ को समान हिस्सों में विभक्त एक निश्चित संख्या में
बढ़ा हुआ देखा,
हरेक अपने-आप में संपूर्ण, किंतु बराबर वही आदमी
जो रोशनी बदलने के दौरान समुद्र पर नुमूदार हुआ था।
- पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 391)
- रचनाकार : पाब्लो अर्मांदो फर्नांदेस
- प्रकाशन : मेधा बुक्स
- संस्करण : 2003
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