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प्यास

pyas

विजया सिंह

और अधिकविजया सिंह

     

    एक

     

    बचपन में एक ऐसी चींटी की कहानी सुनी थी 
    जिसकी प्यास पूरी नदी पीने पर भी नहीं बुझी
    और वो समंदर को पीने चल पड़ी  

    ऐसी गहरी प्यास 
    जो समंदर के खारे जल को भी पी जाए 
    उसके माणिक, रतनों, खनिजों, और तैरने वाले समस्त जीवों समेत 

    ऐसी ही कई प्यासी   
    सफ़ेद एम्बेसडर कारें निकल पड़ी है 
    अपने, अपने बिलों से 

    उनकी दो नहीं सिर्फ़ एक आँख है 
    और वो सिर के आगे नहीं, सिर के ऊपर  है 
    लाल है, जलती-बुझती है, और चारों ओर घूमती है  

    ये एम्बेसडर कारें पूरे जम्बूद्वीप का निरीक्षण कर रही हैं 
    एक अभी इसी वक़्त गंगा की तलहटी में उतर रही है 
    दूसरी उड़ीसा के पहाड़ों में सुरंग से धरती के भीतर जा रही है।  

    तीसरी गुजरात के कच्छ में तेल स्नान कर रही है 
    चौथी सौराष्ट्र के कपास को आकाश में उड़ाती सरपट भागी जा रही है 
    पाँचवीं ईरान के पानी पर नहीं, कीटनाशक पर चलती है।  

    छठी, सातवीं... सैकड़ों लाल आँखों वाली सफ़ेद चींटियाँ 
    हरे पेड़ों वाले जंगलों, नीले रंगों वाली नदियों, ठंडी बर्फ़ीली वादियों  
    की तरफ़ चल पड़ी हैं। 

    इनमें से कुछ एक, अफ़सरों की बीवियों को कॉलेज छोड़ने
    और उनके बच्चों को स्कूलों से लिवाने  
    सायरन बजाती शहर की सड़कों पर दौड़ रही हैं। 

    दो

    मुझे तलाश है उस कारीगर की जिसने यहाँ इस दो बित्ते के बाग़ में 
    यह आलीशान फ़व्वारा क़ायम किया
    जिसमें रुहअफ़ज़ा, खस, और नारंगी के शर्बत 
    धरती के गुरुत्वाकर्षण को धता बताते हुए 
    पूरी ताक़त से आकाश की ओर उठते हैं 
    और गिरते हैं धड़ाम से अपनी ही बग़ावत से विस्मित
    बच्चे टकटकी लगाए इन शर्बतों को मुँह में झेलने को तैयार खड़े हैं 
    पर माँओं ने कस कर थाम रखे हैं वे हाथ 
    जो पानी के छूते ही गलफड़ों में बदल जाएँगे 
    सिर्फ़ देखने भर से उनकी आँखों में तैरने लगी हैं सोन मछरियाँ 
    वहाँ उस छोटी तलैया में
    जो सजी है नीली और सफ़ेद चौकोर गोटियों से 
    जो शायद इस्तांबुल की नीली मस्जिद के तहख़ाने से लाई गई हैं 
    मुँह-अँधेरे समरकंद के रास्ते
    कौन है वो कलाकार जिसने रंगों का इतना बारीक अध्ययन किया है 
    जो जानता है कि नीला रंग समंदर से ज़्यादा गहरा है 
    और हमारी चेतना के सबसे गहरे कोष में थपकी देता है। 

    तीन

    हम कहाँ-कहाँ, क्या-क्या हटा सकते हैं 
    कि जीवन की संभावना बनी रहे 
    87% या उससे कुछ ज़्यादा?
    मसलन क्या आप अपने स्तन कटवा सकते हैं
    या हटवा सकते हैं अंडकोष
    कैंसर की आशंका से?
    जो कोशिका दर कोशिका, ऊतक दर ऊतक 
    आपके जीवन की शक्यता को ले देकर 5% या उससे कुछ कम 
    किए दे रहा है
    यूँ हमारे युग में हमारी चटोरी जीभ निगल रही है 120%
    धरती के हर ऊतक, हर कोशिका, हर स्नायु को
    बढ़ती जा रही है जे.सी.बी. मशीनों और पीले बुलडोज़रों की संख्या 
    सिमट रहे हैं पहाड़, जंगल, नदियाँ 
    बिछ रहे हैं सड़कों के जाल  
    नूह की नाव उलट चुकी है 
    टुन्ड्रा की पिघलती बर्फ़ में 
    हज़ारों, हज़ारों सालों के इंतज़ार के बाद 
    आने को बेताब हैं सूक्ष्मधारी 
    अपने कँटीले बदन और तीखे ज़हर लिए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विजया सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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