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गाय

gay

वीरेन डंगवाल

और अधिकवीरेन डंगवाल

    वह एक गाय है

    धुँधला-सफ़ेद है उसका रंग

    वह घास चर रही है वहाँ जहाँ बरसात ने मैदान बना दिया है

    जब वह चरती है तो चर-चर करती है मुँह से फूँक मारती

    जब बढ़िया दूब के मोटे गुच्छे मिल जाते हैं तो उपाड़ लेती है

    फ़र्क़ होती है यह आवाज़ पहली आवाज़ से

    छोटे-छोटे हैं उसके सींग और थन

    आँखें अभी तक चपल हैं

    इसी पूस तक ब्याएगी पहली बार

    जभी उसकी धुँधली-सफ़ेदी थोड़ा-सा चमकेगी

    जभी थन भरेंगे जितना भर सकेंगे

    अभी तो चमकती हुई चलती हैं उसकी क्लांत पसलियाँ

    हड़बड़ी में घास को ठूँसती हुई

    काफ़ी दिनों बाद

    उसके गले की झालर जब हो जाएगी इतनी लुतलुती

    कि मुट्ठी में जाए

    तब वह भी याद करेगी शायद अपने बछड़ेपन को

    अपनी कोयेदार आँखों के आँसुओं पर बैठी

    मक्खियों को उड़ाने के लिए

    अपना भारी सर डोलती हुई

    हल्के-हल्के

    स्रोत :
    • पुस्तक : कविता वीरेन (पृष्ठ 71)
    • रचनाकार : वीरेन डंगवाल
    • प्रकाशन : नवारुण
    • संस्करण : 2018

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