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धितांग

dhitang

हेमंत कुमार का धितांग धितांग बोले

गीत पर कुछ लिखने की इच्छा नहीं मुझे यहाँ

मेरे अपने जीवन में जितने धितांग बजते हैं हर दिवस

उन सब के बारे में कहना है मुझे आज

मैं कालीबाड़ी पोखर की आत्मजा हूँ

वहीं से जन्मी

पोखर किनारे टीमटाम वाला छोटा-सा घर था

पोखर से कोकनद तोड़ कर पूजाघर में माँ लोक्खी को चढ़ा दिया करती थी

वहाँ की लड़कियाँ छुटपन में हरिप्रिया-हरिप्रिया खेलने की होड़ में ख़ुद को ही हरिप्रिया समझ जाया करती थीं

यह मेरे जीवन का पहला धितांग था

मैं हरिप्रिया बन सकी

भारत के दूसरे सबसे बड़े महानगर में जन्मने के बावजूद मैं आज तक बिरला तारामंडल में माँ बाबा को नहीं देख पाई

दादा उमेशचंद्र बैनर्जी कहते थे मरने के

बाद हम सब तारा बनते हैं

कितने पापिष्ठ निकले दादा

कौन कहता है इतना बड़ा असत्य अपनी पौत्री से

यह दूसरा असत्य धितांग बनकर कानों में अभी तक टंकार भरता है

घर के आँगन में देवी की प्राण-प्रतिष्ठा में वेश्यालय की मिट्टी लेने जाती थी माँ और काकियाँ

सभी पुरुष अपनी पवित्रताएँ वेश्यालय के बाहर छोड़कर अंदर प्रवेश करते हैं

एक ओज देखा है मैंने वेश्याओं के मुख पर

मंत्रमहोदधि पढ़ाती रही माँ और काकियाँ बचपन में हम बच्चों को

काकी की नज़र बचाकर मैंने काका को देखा था एक बार वेश्याओं को देखते हुए

यह तीसरा धितांग मुझे किन्हीं चार पुरुषों पर विश्वास नहीं करने देता

जिस विद्यालय में प्रधानाचार्या हूँ

वहाँ का चपरासी मुझसे घृणा करता है

उसकी चाहना है कि मैं अपना ऑफ़िस तीन बजे ही बंद कर दिया करूँ

वह डायबिटिक है, दुपहर में नींद की आदत है उसे

कभी देर हो जाती है तो घूरता है मुझे

मैं सॉरी भैया बोलकर मुस्कुरा देती हूँ

यह चौथा धितांग मुझे ही धिक्कारता है

ईश्वर उन्हें सदा स्वस्थ रखें

सुबह केश काढ़ती हूँ फिर अगली सुबह ही मौक़ा मिल पाता है

थककर अगर मोबाइल में रबींद्र संगीत लगाती हूँ तो बच्चे ईयरफ़ोन पकड़ा देते हैं

बच्चो के बादशाह और जस्टिन बीबर से मेरे रवींद्रनाथ ठाकुर हार जाते हैं

इस पाँचवें धितांग में मेरा आत्मसम्मान खो जाता है

घृणा नहीं कर पाती किसी से

दूसरों की ग़लती पर भी ख़ुद ही आगे बढ़कर क्षमायाचना कर लेती हूँ

कलयुग में चालाक बने रहना चाहिए

जेठानी कहती है मुझसे

यह छठवाँ धितांग मुझे मेरी पहचान नहीं बनाने देता

सातवाँ धितांग चिपका है मेरी आत्मा से

बांग्लाभाषी होने के बावजूद भी मुझ पर बांग्ला शब्दों की नक़ल का आरोप लगा है

मैं अचंभित हूँ

यह तो ऐसा हुआ जैसे पक्षी पर कोई आरोप लगाए कि उसने अपने पर चुराए हों कहीं से

मैंने उनका मन दुखाया

मैंने क्षमा याचना की, समझाया, ईश्वर की सौगंध भी खाई कि ऐसा मैंने नहीं किया

मेरी नहीं सुनी गई

मैं उनसे स्नेह रखती हूँ

ईश्वर उनसे पृथ्वी की सबसे सर्वश्रेष्ठ कविताएँ लिखवाएँ

कैसे होने चाहिए ये धितांग

सुंदरबन के किसी बाघिन की तरह,

या राशन की क़तार में लगी एक सत्रह साल की लड़की की तरह जो अपनी छाती ढाँपे खड़ी है

समुद्र किनारे सनबाथ लेते दो अँग्रेज़ों की तरह, या किसी किरानची की बुद्धि की तरह,

युद्ध में जाते सैनिक की तरह या

उस अधेड़ औरत की तरह जिसका सुख उसके शादी के लहँगे में संदूक़ में सो रहा है

या उस लड़के की तरह जो प्रपोज़ करने से डर रहा है

या उस बीमा एजेंट की तरह जिसकी कोरोना में पॉलिसी नहीं बिक रही

ये धितांग हम सबके जीवन में है

अंतर बस इतना है कि कोई इसे टूटे पहाड़ की तरह साधता है और कोई

धितांग धितांग बोले गीत की तरह...

स्रोत :
  • रचनाकार : जोशना बैनर्जी आडवानी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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