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चींटी

chinti

हरि मृदुल

हरि मृदुल

चींटी

हरि मृदुल

और अधिकहरि मृदुल

    चींटी ने कब मेरे पाँव से सिर तक का सफ़र

    तय किया

    पता चला

    कान के आस-पास एक अपरिचित-सी पदचाप सुनाई दी

    तब उसकी मौजूदगी का आभास हुआ

    तो इतनी मधुर होती है चींटी के चलने की आवाज़

    वह काफ़ी देर मेरे चेहरे पर घूमी

    मेरी पलकों पर क़दमताल की

    नाक के ठीक नीचे पहुँचकर की गुदगुदी

    मैं बड़ी मुश्किल से अपनी साँसें थामे रहा

    होंठों पर भी वह कुछ पल रुकी

    उसने मुझे चूमा

    फिर कान के पास पहुँच कर कुछ फुसफुसाई

    जिसे मैं पूरी कोशिश के बावजूद समझ नहीं पाया

    अब मुझे इंतज़ार है उस दिन का

    जब मैं उससे बात कर पाऊँगा

    स्रोत :
    • रचनाकार : हरि मृदुल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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