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चेहरे

chehre

अंकुश कुमार

और अधिकअंकुश कुमार

    मैं निकलता हूँ रोज़ घर से

    अपने चेहरे पर लगाकर कई चेहरे

    गली में खेलते बच्चों को देखकर

    मैं उनके हाथ से बल्ला लेता हूँ

    और एक ऊँचा शॉट लगाकर

    विजयी भाव से देखता हूँ

    रिक्शेवाले को कई बार

    मेरी दरियादिली का गुणगान करते देख सकते हैं आप

    किस तरह वह बताता है अपने साथियों को

    कि आज भी साहब ने

    किराए से दस रुपए ज़्यादा दिए

    दफ़्तर में मेरे नीचे काम करने वाले कर्मचारी

    आपस में बात करते हैं कि मैं कितना खड़ूस हूँ

    मैं चीख़ता-चिल्लाता रहता हूँ उन पर

    जब वे अपना काम तरीक़े से नहीं करते

    वे आपस में खुसफुसाहट करते हुए मुझे

    बॉस के कुत्ते की उपाधि से अलंकृत करते हैं

    बॉस मुझे एक शरीफ़ और ईमानदार आदमी समझता है

    वह कई बार मेरे लिए अलग से पैसे भी देता है

    औरयूँ ही मेरे कर्तव्यपरायण बने रहने की कामना करता है

    घर पर मेरी पत्नी से मेरी खिट-पिट रहती है

    वह कई बार मेरे साथ सिनेमा जाने को कहती है

    जिसे मैं सहर्ष ही नकार देता हूँ

    वह मुझे दुनिया का सबसे नाकारा आदमी समझती है

    मैं आज तक नहीं समझ पाया कि मैं कौन हूँ

    शरारती बच्चा, दरियादिल इंसान, खड़ूस अधिकारी,

    बॉस का कुत्ता या नाकारा पति

    स्रोत :
    • पुस्तक : आदमी बनने के क्रम में (पृष्ठ 86)
    • रचनाकार : अंकुश कुमार
    • प्रकाशन : हिन्द युग्म
    • संस्करण : 2022

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