चाहो तो तुम भी ठुकरा देना मेरा प्रस्ताव
chaho to tum bhi thukra dena mera prastaw
कृष्ण मुरारी पहारिया
Krishna Murari Pahariya
चाहो तो तुम भी ठुकरा देना मेरा प्रस्ताव
chaho to tum bhi thukra dena mera prastaw
Krishna Murari Pahariya
कृष्ण मुरारी पहारिया
और अधिककृष्ण मुरारी पहारिया
चाहो तो तुम भी ठुकरा देना मेरा प्रस्ताव
अब तक मेरी हर अभिलाषा रही अधूरी
मन के सुख ही हर परिभाषा रही अधूरी
कैसे प्रेमगीत गाता जब मीत न पाया
और दर्द गाने को भाषा रही अधूरी
युग-युग से मैं सहता आया हूँ अंतस् पर घाव
मत सोचो मुझको कोई पीड़ा भी होगी
पीड़ा ही पीड़ा तो मैंने अब तक भोगी
भटकन और निराशा सहने का आदी हूँ
नहीं आज से, मैं तो जनम-जनम का रोगी
अब तो मुझको हो आया है आघातों से चाव
अपने मन का रत्न लिए मैं बाज़ारों में घूमा
ग्राहक को आवाज़ लगाता गलियारों में घूमा
सुबह न देखी, शाम न देखी, क्या दुपहर, क्या रात
भूख-प्यास सह सभी उजाला अँधियारों में घूमा
पटा न सौदा, आयु गँवाई करते केवल भाव
- पुस्तक : यह कैसी दुर्धर्ष चेतना (पृष्ठ 16)
- रचनाकार : कृष्ण मुरारी पहारिया
- प्रकाशन : दर्पण प्रकाशन
- संस्करण : 1998
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