यह उमड़ते हुए जनसैलाब जो आप देख रहे हैं
यह किसी मेले की तस्वीर नहीं है
या किसी नेता-अभिनेता का रैला भी नहीं है
यह तस्वीर है
साहित्य में वर्णित उन भारतभाग्यविधाताओं की
जो दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चंडीगढ़
गुड़गाँव, नोएडा, ग़ाज़ियाबाद जैसे स्मार्ट महानगरों के निर्माता हैं।
तस्वीर में छोटे-छोटे बच्चे जो दिख रहे हैं
और उनके माथों पर भारी-भारी मोटरियाँ
वे उनके दुखों और संतापों की मोटरियाँ हैं
वही मोटरियाँ लेकर वे
अपने तथाकथित वतन से परदेस को आए थे
और फिर वही लेकर
परदेस से अपने वतन को लौट रहे हैं।
हज़ारों किलोमीटर की वतन वापसी के लिए
उनके पास न कोई हाथी है, न कोई घोड़ा है
वहाँ पैदल ही जाना है।
रास्ते में उन्हें साँप डँसेगा या बिच्छू
घडि़याल जकड़ेगा या मगरमच्छ
पैरों में छाले पड़ेंगे या फफोले
सूरज की आग जलाएगी या बारिश के ओले
इसकी चिंता करके भी वे क्या कर सकते हैं।
परदेस में उनके हाथों को जब कोई काम ही नहीं रहा
घरों से उनको बेघर ही कर दिया गया
राशन की दुकानें जब ख़ाक ही हो गईं
तब वे करें तो क्या करें
जाएँ तो कहाँ जाएँ।
वे उसी वतन को लौट रहे हैं
जिनको मुक्ति की अभिलाषा में छोड़ना
उन्हें क़तई अनैतिक-अनुचित नहीं लगा था
यह जानते हुए भी
फिर वहीं लौट रहे हैं
कि वह उनके लिए किसी नरक के द्वार से कम नहीं है
उन्हें पता है कि
जिनसे मुक्ति के लिए उन्होंने गाँवों को छोड़ा था
वे उनसे इस बार कहीं ज़्यादा क़ीमत वसूलेंगे
उन्हें उनकी मजूरी के लिए
दो सेर नहीं एक सेर अनाज देंगे
उनके जिगर के टुकड़ों को
बाल और बंधुआ मज़दूर बनाएँगे
उनकी बेटियों-पत्नियों को दिनदहाड़े नोचेंगे-खसोटेंगे
शिकायत करने पर
रस्सा लगाकर
ट्रकों में बाँधकर गाँवों में घसीटेंगे
सिर उठाने पर सिर क़लम कर देंगे
आँखें दिखाने पर आँखें फोड़ देंगे
नलों से पानी पीने पर गोली मार देंगे
गले में घड़ा और कमर में झाड़ू फिर से बँधवाएँगे
जो कमोबेश अभी भी गाँवों में लोगों को भुगतना पड़ता है।
भारतीय संविधान ने उनमें आज़ादी के जो पंख लगाए थे
वे फिर से कतरे जाएँगे
मनुष्य की गरिमा की अकड़ ढीली की जाएगी।
वे जाएँ तो जाएँ कहाँ
करें तो करें क्या।
अंधकार युग में उन्हें ही क्यों ढकेला जा रहा है?
और तो सवैतनिक अवकाश पर हैं
अपने-अपने घरों में सुरक्षित हैं
और वे सड़कों पर दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं!
पीछे कुआँ था तो आगे खाई है
उनके जीवन की यही कहानी है।
कोरोना महामारी होगी
लेकिन उनके लिए तो यह दोहरी-तिहरी महामारी है!
सारी सभ्यताएँ नदियों और नगरों की सभ्यताएँ हैं
पहली बार कोई नागर सभ्यता
उनके लिए अभिशाप बनाई गई है।
वे जाएँ तो जाएँ कहाँ
वे करें तो करें क्या।
- रचनाकार : पंकज चौधरी
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.