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कैफ़े प्राग

cafe prag

सविता सिंह

सविता सिंह

कैफ़े प्राग

सविता सिंह

और अधिकसविता सिंह

    लगातार बारिश के बाद

    पिघलकर पानी ही तो हो गई थी इतनी सारी बर्फ़

    पड़ी महीनों से लदी सड़कों की आत्मा को किए बोझिल

    कितने चुंबनों आलिंगनों टूटे प्यार के

    लंबे रिश्तों को महसूस करती

    विषाद की उठती-गिरती लहरों में डूबते

    मन की भयावह स्थिति को झेलती

    सुनती किसी अंतहीन रुदन के स्पंदन में

    मरती उम्मीद को कि

    अब पुनः प्रेम नहीं किया जा सकता

    जो चला गया वह लौट नहीं सकता

    यह बर्फ़ साथ होती है उनके

    जो कैफ़े प्राग में किसी परिचित के साथ

    पीते हैं गुलाश

    करते हैं बातें 'फ़ेल्लीनी की जूलिया और उसकी आत्माएँ' पर

    या फिर चुपचाप देखते हैं बारिश

    तत्परता से होती है सहमत यह बर्फ़ उनसे जो मानते हैं

    कैफ़े प्राग सहज ही अंतरंग हो जाता है

    फीकी किसी हँसी से

    चरमरा गए विश्वास से

    अकेले लोगों की अजीबोग़रीब दुनिया से

    और फिर यहीं तो हुई थी मुलाक़ात

    प्रेम में पड़ी इज़ेबेला से

    जो मिली थी जब दूसरी बार

    तो फटी आँखों से देख रही थी खिड़की के बाहर

    ज्वर से पीड़ित प्रेम में आहत

    खाती सूखी गारलिक ब्रेड

    कैफ़े प्राग आते हैं सभी

    सुखी और दुखी

    देखने रोज़ाना कॉनकोर्डिया विश्वविद्यालय की

    फ़िल्म दीर्घा में कला फ़िल्मों के शो

    कभी अपने को खोजने कभी खो जाने

    इन फ़िल्मी चरित्रों में

    भुलाने या करने याद बातें

    जिन्होंने जोड़ा था उन्हें

    इस शहर से, इसकी ठंड से

    संभव किये थे प्रेम या फिर उपजायी थी छुटन

    परिचय में इनके ला खड़ा किया था

    क्षणिक मोह में बिलखते सच को

    कुछ भी नहीं इस शहर में

    कैफ़े प्राग जैसा

    शब्द और अर्थों की एक सुरंग-सा

    एकालाप की विस्थापित दुनिया में पड़ा औंधा

    कैफ़े प्राग इजेबेला के प्रेम की विफलता पर

    दुखी होता है

    जूलिया की आत्माओं की मुक्ति की कामना करता है

    बाहर बर्फ़ और बारिश धोती रहती हैं अलग से

    दिलों के घाव

    उनके दाग़

    स्रोत :
    • पुस्तक : अपने जैसा जीवन (पृष्ठ 77)
    • रचनाकार : सविता सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2001

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