बच्चो! हक्का-बक्का मत रह जाना
bachcho! hakka bakka mat rah jana
बच्चो! हक्का-बक्का मत रह जाना
हमें माफ़ मत करना
जहाँ कहीं भी हमने स्वीकारा हो दब्बूपन से।
तुम साहस करना
कुचल हमारी स्वीकृति देना
साफ़-साफ़ कहना
ज़ोरों से घोषित करना
अपनी निर्भय जागरूकता
जब भी हमने बेशर्मी से
दबा दिया बातों को हो।
मैं अकसर अपनी अनुगूँजें
तुम में सुनता हूँ
जिनकी झंकृत आवाज़ों को
दबा नहीं सकता है कोई।
और समझता हूँ मैं हृदय तुम्हारे
मुझे गर्व है तुम पर
ओ मेरे प्रतिरूप युवाओ!
- पुस्तक : बल्गारियाई कविताएँ (पृष्ठ 89)
- संपादक : रमेश कौशिक
- रचनाकार : दिमितेर मेतोदिएव
- प्रकाशन : पराग प्रकाशन
- संस्करण : 1985
Additional information available
Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.
About this sher
rare Unpublished content
This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.