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बियाना की याद

biyana ki yaad

प्रांजल धर

प्रांजल धर

बियाना की याद

प्रांजल धर

और अधिकप्रांजल धर

     

    उमानंदा
    ब्रह्मपुत्र की विशाल
    चौड़ाई में टिक कर खड़े
    मयूरद्वीप पर
    कच्चे नारियल का एक अंजुलि
    मादक पानी पिया,
    और शाम को नदी चीरते
    ख़ूबसूरत शिकारे पर
    चार पल
    जीवन को
    एक बिल्कुल अलग
    कोण से जिया!
    लीचियाँ जीवन की माला में
    मोती बनीं
    और कानों में गूँज उठीं
    शंकरदेव की पावन-पौराणिक
    ध्वनियाँ घनी।
    नदी-द्वीपों तक ले जाते मल्लाह,
    उनकी नौकाएँ और उनके पतवार;
    चार क्षण को ही सही,
    कभी-कभी कितना ममतामय
    लगता है यह संसार!
    समुद्र की लकीरों में
    क्यों धुँधला गया
    पूर्वोत्तर का
    वह संगीतप्रेमी निश्छल परिवार?
    बेगानेपन का बड़ा
    संत्रास पाया है
    इसीलिए उस असमिया
    परिवार ने सजल नेत्रों से
    एक बियाना गाया है
    जिसे कोई समझ नहीं सकता।

    चीख़ते दर्द की सिलवटों में
    लिपटी आँसुओं की चादर
    फटकर चीथड़े हुई चली जाती है
    और
    डालगोबिंद के उस बियाना की
    बड़ी याद आती है।
    बड़ी याद आती है।
    ________________
    बियाना—असम का एक विरह गीत है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रांजल धर
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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