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बसना

basna

चंदन सिंह

और अधिकचंदन सिंह

    यह शहर का नया बसता हुआ इलाक़ा है

    यहाँ सब्ज़ियों से अधिक अभी सीमेंट छड़ की दुकानें हैं

    म्यूनिसपैलिटी ने अभी इसे अपना पानी नहीं पिलाया है

    बने-अधबने मकानों के बीच

    अभी भी बची हुई हैं इतनी जगहें

    कि चल सकें हल

    इस इलाक़े में

    अभी भी दिख जाते हैं जुते हुए खेत

    इन खेतों में मिट्टी के फूटे हुए ढेलों को देख

    मुझे विश्वास नहीं होता

    कि अकेले हल का काम है

    मुझे लगता है जैसे वहाँ कोई है

    जो मिट्टी को फोड़कर बाहर आना चाह रहा है

    सामने पानी लगे खेतों में

    स्त्रियाँ

    लाल-पीली-हरी सचमुच की रंगीन साड़ियों में

    विराट पक्षियों की तरह पृथ्वी पर झुककर

    रोप रही हैं धान

    हर बार जब ये रोपती हैं धान

    तो गीली मिट्टी में जैसे कहीं खुल जाती है कोई चोंच

    पर ये सिर्फ़ खेत ही नहीं

    प्लाट भी हैं

    काग़ज़ पर नहीं तो आँखों में

    कहीं कहीं नक़्शा तैयार है

    और वह कुआँ जिसके प्लाट में आया है

    इस बात से ख़ुश

    कि उसे अलग से सोकपिट नहीं बनवाना होगा

    स्त्रियाँ जहाँ रोप रही हैं धान

    कल अगर यहाँ आना हुआ गृह-प्रवेश के भोज में

    तो वह मकान

    जिसकी दीवारों पर प्लास्टर नहीं होगा

    जिसकी खिड़कियों-दरवाज़ों की कच्ची लकड़ियों में

    एक ख़ुशबू होगी जिसे पेड़ छिपाकर रखते हैं

    जिसकी ताज़ा छत की छाया में एक गीलापन होगा

    वह मकान मुझे

    एक खड़ी फ़सल की तरह ही दिखाई देगा पहली बार

    यह शहर का नया बसता हुआ इलाक़ा है

    जैसे-जैसे यह बसता जाएगा

    वैसे-वैसे नींवों के नीचे दबते चले जाएँगे

    इसके साँप

    इसके बिच्छू

    बरसात की रातों में रात-रात भर चलने वाली

    झींगुरों की तीखी बहस

    यहाँ सड़कें होंगी

    कार और स्कूटर होंगे

    बाज़ार होगा

    स्कूल होगा

    आवारा कुत्ते होंगे

    पते होंगे

    जिन पर चिट्ठियाँ आने लगेंगी

    लिफ़ाफ़ों में बंद दूसरे इलाक़ों की थोड़ी हवा यहाँ पहुँचेगी

    पर सबसे अच्छी बात यह होगी

    कि यहाँ बच्चे जन्म लेंगे

    ऐसे बच्चे

    जिनकी देह के सारे तत्त्व

    क्षिति जल पावक गगन समीर सभी

    इसी इलाक़े के होंगे

    इसी इलाक़े में रखेंगे वे

    डगमगाता हुआ अपना पहला क़दम

    और जब वहाँ

    उस जगह पड़ेगा उनका पहला क़दम

    तो मैं फिर याद नहीं रख पाऊँगा

    कि पहले वहाँ

    एक छोटा-सा पोखर हुआ करता था

    और जिस रात चाँद

    इस इलाक़े तक आते-आते थक जाता था

    वहीं डूब लेता था

    इस इलाक़े का बसना उस दिन लगभग पूरा मान लिया जाएगा

    जिस दिन यहाँ पहली हत्या होगी

    और जिस दिन यहाँ की झोंपड़पट्टियाँ उजाड़ दी जाएँगी

    वह इसके बसने का आख़िरी दिन होगा

    ऐसे ही बसेगा यह इलाक़ा

    यहाँ बसने के चक्कर में एक दिन पाऊँगा

    उजाड़ होकर ढह चुका है गाँव का घर

    देखते-देखते वह तब्दील हो चुका है

    एक डीह में

    जीते-जी हो गया हूँ मैं

    अपना ही पूर्वज।

    स्रोत :
    • रचनाकार : चंदन सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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