बहुत कुछ कर सकते हैं ज़िंदगी में का काम बहुत था
bahut kuch kar sakte hain zindagi mein ka kaam bahut tha
विनोद कुमार शुक्ल
Vinod Kumar Shukla
बहुत कुछ कर सकते हैं ज़िंदगी में का काम बहुत था
bahut kuch kar sakte hain zindagi mein ka kaam bahut tha
Vinod Kumar Shukla
विनोद कुमार शुक्ल
और अधिकविनोद कुमार शुक्ल
बहुत कुछ कर सकते हैं ज़िंदगी में का काम बहुत था।
कुछ भी नहीं कर सके की फ़ुरसत पाकर
मैं कमज़ोर और उदास हुआ।
ऐसी फ़ुरसत के अकेलेपन में
दुःख हुआ बहुत,
पत्नी ने कातर होकर
पकड़ा मेरा हाथ
जैसे मैं अकेला छूट रहा हूँ
उसे अकेला छोड़।
बच्चे मुझसे आकर लिपटे
अपनी पूरी ताक़त से
मैंने अपनी ताक़त से उनको लिपटाया
और ज़ोर से
पत्नी-बच्चों ने मुझे नहीं अकेला छोड़ा
फिर भी सड़क पर गुज़रते जाते
मैं
हर किसी आदमी से अकेला छूट रहा हूँ
सबसे छूट रहा हूँ
एक चिड़िया भी
सामने से
उड़कर जाती है
अकेला छूट जाता हूँ।
चूँकि मैं आत्महत्या नहीं कर रहा हूँ
मैं
दुनिया को नहीं छोड़ रहा हूँ।
- पुस्तक : कवि ने कहा (पृष्ठ 40)
- रचनाकार : विनोद कुमार शुक्ल
- प्रकाशन : किताबघर प्रकाशन
- संस्करण : 2012
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