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बहुत दिनों तक

bahut dinon tak

उत्पल बैनर्जी

उत्पल बैनर्जी

बहुत दिनों तक

उत्पल बैनर्जी

जब निराशा का अँधेरा घिरने लगेगा

और उग आएँगे दुखों के अभेद्य बीहड़

ऐसे में जब तुम्हारी करुणा का बादल

ढँक लेना चाहेगा मुझे शीतल आँचल की तरह

मैं लौटा दूँगा उसे

कि मुझे सह लेने दो

जो तुमने अब तक सहा है

उम्र की किसी दहलीज़ पर

जब थमने लगेगा साँसों का ज्वार

जीवन के निर्जन मरुस्थल में

अलक्षित कर दी गईं

किन्हीं प्राचीन दंतकथाओं-सी

भटकेंगी जब कामनाएँ

तब अपनी थकन लिए

मैं चला जाऊँगा

तुम्हारी दया की हरीतिमा से भी दूर

वहाँ—

जहाँ कोई नहीं जाना चाहेगा!

अपने अवसाद के घर में

मैं बचाकर रखूँगा थोड़ा-सा संगीत

किसी याद में लिखी गई पवित्र कविताएँ

कुछ शरारत भरे क्षणों की स्मृति

और धुँधली पड़ गई कुछ चिट्ठियाँ,

फिर एक दिन

मृत्यु की अनसुनी पुकार पर

चुपचाप उठकर यूँ चल दूँगा

कि किसी को पता ही चले

कि कभी मैं था

कि मेरे साथ दुखभरी अनेक गाथाएँ थीं

प्रेम था, प्रणति थी...

मैं इस तरह चला जाऊँगा

कि फिर बहुत दिनों तक

किसी को याद नहीं आऊँगा!

स्रोत :
  • रचनाकार : उत्पल बैनर्जी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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