बहुत बारिश हुई थी लापुंग में
bahut barish hui thi lapung mein
एक
साथ-साथ भीग कर
तुम्हारी पलकों को
अंतिम बार चूमते हुए
फिर न छू पाने का असह्य दुःख
आखों के कोनों में आकर ठहर गया था
ढुलक आता इससे पहले
‘आता हूँ’ झटके से कहकर सीढ़ियाँ उतर रहा था
तुम कहे जा रही थीं—
‘ठीक से चेक कर लो’
‘कुछ छूटा तो नहीं’
‘इयरफ़ोन, चार्जर, पर्स, पैसे… सब रख लिया है न’
बेख़याली के तूफ़ान में डूबा
कह नहीं पाया
कि जो छूटा जा रहा था
उसे सहेजना संभव नहीं था अब
नीचे तक छोड़ने आती हुई तुम
बार-बार कह रही थीं—
‘ठीक से जाना’
‘ख़याल रखना अपना’
जाना भी कहीं ठीक से हो पाता है
और जाते हुए ख़याल कैसे रखा जाता है
ख़याल तो मुझे तुम्हारा…
पर
जाया नहीं जाता जिस तरह
ठीक उस तरह से जा रहा था मैं*
जाते हुए रुँधे गले से
ज़माने भर की ताक़त लगाते हुए कहा—
हाँ! रख लिया है।
अब तुम जाओ, मैं चला जाऊँगा
एक अंतिम बार
लिपट जाना चाहता था तुमसे
कि बारिश होने लगी अचानक
ज़िंदगी का वह एक फ़ैसला
और सदियों का रूठ जाना मुझसे
तेज़ बारिश की घिरती उस अँधेरी शाम में
तुम्हारी तरफ़ न मुड़कर
कूद कर ऑटो में बैठ गया था मैं
बहुत बरसी थी शाम लापुंग में
बारिश होती रही थी राँची पहुँचने तक
बाद में फ़ोन पर बताया तुमने
बहुत बारिश हुई आज लापुंग में।
दो
बराबर आता है इधर
लापुंग अख़बारों में
ख़बरें होती हैं
जंगली हाथियों के ‘आतंक’ की
‘नक्सली’ मुठभेड़ों की
निर्दोष रोशन होरो के मारे जाने की
आश्चर्य है कि
तुम्हारा मगन हो कारो को बहते देखना
उसके किनारों पर बैठकर
बहुत अंदर के गाँवों से आए लोगों से
बतियाना बेपरवाह
हुटार जंगल में बेख़ौफ़ लहराना
लापुंग में तुम्हारा होना
और वहाँ से चले जाना
किसी अख़बार की
किसी ख़बर में कभी नहीं आया।
तीन
फिर कभी नहीं गया लापुंग मैं
लापुंग कभी नहीं जा पाया मुझमें से।
चार
अब नहीं रहती तुम लापुंग में
भूल गया होगा लापुंग भी मुझे।
___________
* “जाया नहीं जाता जिस तरह
ठीक उस तरह
तुम जा रही हो”
(दिनेश कुमार शुक्ल की कविता ‘तुम्हारा जाना’ की पंक्तियाँ।)
- रचनाकार : राही डूमरचीर
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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