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और विकल्प ही क्या है…?

aur vikalp hi kya hai…?

गौरव सिंह

गौरव सिंह

और विकल्प ही क्या है…?

गौरव सिंह

और अधिकगौरव सिंह

    यह जानते हुए कि—

    महामारी और दुर्भिक्षों के

    अनुभवों से लबरेज़

    हर पिछली सदी से मिलीं

    तमाम उम्मीदें और आश्वासन

    अगली सदी में झूठी साबित हुए हैं...

    (कि पीड़ा का ये अंतिम पड़ाव है...

    या अगली सदी इससे सुंदर होगी...)

    अपने बस्तों में

    बचाव के सामान रखकर

    महामारी से भरी इस सदी में

    बेहतर वक़्त की दिशा में

    हम दूरी के नियमों का

    पालन करते हुए चले जा रहे हैं...

    किसी सार्वजनिक सतह पर

    अनजाने में हाथ छू जाने के डर के साथ!

    नन्हे शिशु को देखकर

    मन में उमड़ रहे वात्सल्य को

    शत्रु के भय से अंदर ही दबाते हुए!

    महामारी के बाहर होने का अंदेशा लिए

    अपनी खिड़की से दुनिया को निहारते हुए!

    और हर सुंदरता के ओट में

    शत्रु के छिपे होने की आशंका लिए...

    हम काँपते क़दमों के साथ बढ़ रहे हैं

    इस सदी से उस सदी की ओर...!

    कोई उनसे नहीं पूछ रहा यह प्रश्न

    कि आख़िर कब तक जिएँगे हम

    इतनी महामारियों के बीच?

    मेरे लोगों के पास

    हर प्रश्न का एक ही उत्तर है—

    'और विकल्प ही क्या है…?'

    स्रोत :
    • रचनाकार : गौरव सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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