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और कोई रास्ता सुझाएँ

aur koi rasta sujhayen

प्रदीप अवस्थी

प्रदीप अवस्थी

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प्रदीप अवस्थी

और अधिकप्रदीप अवस्थी

    अचानक ख़याल आया

    मैं बाहर था जब कहीं

    वे मुझे समझा रहे थे

    कि यह मौक़ा है,

    पैसे अच्छे मिलेंगे

    कुछ नहीं सूझा,

    मैं दौड़ता हुआ घर आया और

    अलमारी से निकालकर तोड़ दिया

    तीन साल से सँभालकर रखा फ़ोटो-फ़्रेम

    कोई दुख नहीं हुआ,

    कोई शांति मिली

    बात प्रेम, प्रतिशोध या नफ़रत की नहीं थी

    बस उस चीज़ के

    वहाँ रहने का महत्त्व ख़त्म हो गया था

    हमारी उदासी इतनी लंबी चली

    कि कई घरों में बच्चे पैदा होकर

    हँसना और बोलना सीख गए

    और हम कोशिश में रहे कि

    खिलखिलाएँगे एक दिन

    मुस्कुराना सिर्फ़ फ़ेसबुक और व्हाट्सएप की

    स्माइली तक सीमित रह गया था

    कितना कुछ छुपाकर जीना था उनसे

    जिन्हें सब कुछ बताना था

    रोज़ उन तक जाना

    और चुपचाप लौट आना था

    दीपिका पादुकोण की माँ समझदार है,

    पर वे कितनों को बचा पाए

    कोई आता था,

    रसोई से रोटियाँ चुरा ले जाता था

    माँ बनाती थी जब

    माँ को लगता था

    मैंने खिड़की से छुपकर जोड़े हाथ

    माँ को देखते हुए कि चुप कर माँ

    देख कितने लोग हैं आस-पास

    लेकिन वह एक बीमारी की गिरफ़्त में थी

    और हमें तब कहाँ पता था कुछ

    मैंने सड़कों पर गिराए उसके लिए आँसू

    लेकिन अनिच्छा और पछतावों के पार जाकर

    कोई अपने कंधों पर लदा बोझ उतार रहा था

    मैंने ख़ुद से कहा कितनी बार

    कि मेरे बस का नहीं

    अब एक थका हुआ दिमाग़ है

    इसलिए मैं बात करते-करते

    कहीं भटक गया हूँ,

    क्षमा करें!

    दुःख बाँटना मुझे असहाय बनाता है

    और कोई रास्ता सुझाएँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रदीप अवस्थी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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