एक बार कुमार गंधर्व को सुनते हुए
ek bar kumar gandharw ko sunte hue
एक
आँख कुछ छलछलाती है
होंठ कुछ बुदबुदाते हैं
गले में कुछ अटकता है,
कुछ है जो आत्मा के पार जाता है
एक गंधर्व गाता है।
दो
आसमान कुछ और उठ जाता है
धरती के बंधन खुल जाते हैं
हवाओं की साँस थमने लगती है
एक हंस धीरे से उड़ जाता है
एक गंधर्व गाता है।
तीन
एक आलाप में सिमट आते हैं सारे दिगंत
इस आवाज़ का न आदि है न अंत
समय जैसे ठहर जाता है
सदियों का सन्नाटा तोड़ता हुआ
कोई कबीर आता है
एक गंधर्व गाता है।
चार
रागदीप्त रोम-रोम
प्रतिध्वनित व्योम-व्योम
अंबर दीये की तरह थरथराते शब्दों को
धरती की थाल में सजाता है
और फिर उन्हें सागर में सिरा आता है
एक गंधर्व गाता है।
पाँच
यह कौन है
जिसका गायन एक महामौन है?
झीनी-झीनी बुनी जाती है स्वरों की चादर
साथ में जिसके
एक उदात्त समंदर लहराता है
एक गंधर्व गाता है।
छह
बहुत भीतर पैठा हुआ अँधेरा
बहुत भीतर उतरा हुआ उजाला
सब जैसे सुरों की एक विराट लहर में बहने लगते हैं
तृष्णाएँ आँख मूँद लेती हैं
राग-विराग का एक दरिया किसी अनहद पर नजर आता है
एक गंधर्व गाता है।
सात
हिरना
समझ-बूझ कर चरना
पत्ती-पत्ती घास-घास
धरती-धरती अकास-अकास
कोई बहेलिया जाल फैलाता है
एक गंधर्व गाता है।
- रचनाकार : प्रियदर्शन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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