Font by Mehr Nastaliq Web

अर्द्धसमाप्त जीवन

arddhasmapt jiwan

अजंता देव

अन्य

अन्य

अजंता देव

अर्द्धसमाप्त जीवन

अजंता देव

और अधिकअजंता देव

    क्या यही मृत्यु है

    जबकि सब कुछ रह गया पहले-सा

    मैं भी मेरा जीवन भी

    रह गया लोकस्मृति में

    आशा रह गई पुनर्जन्म की

    खीझ रह गई कुछ नहीं पाने की

    शरीर गया पर रह गया अशरीर

    पृथ्वी रह गई विहंगम कोण से दिखती हुई

    रह गई पिपासा जो नहीं मिटेगी जल से

    क्षुधा स्वयं को खा रही है

    निद्रा घेर रही है चेतना को

    महास्वप्न में दिख रहा है तुम्हारा चेहरा

    मेघ में आकृति की तरह

    अनहद के पार से

    पुकार रही हूँ तुम्हें

    चातक की तरह नहीं

    अपनी तरह

    मृत्यु भी पूर्ण नहीं कर सकी

    एक अर्द्धसमाप्त जीवन।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक नगरवधू की आत्मकथा (पृष्ठ 54)
    • रचनाकार : अजंता देव
    • प्रकाशन : क़लमकार प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY