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अकाल मृत्यु

akal mirtyu

मलयज

मलयज

अकाल मृत्यु

मलयज

और अधिकमलयज

    उसके पास एक छुरी है

    वह उससे रोज़ रोटी, मक्खन और सब्ज़ी काटता है

    फिर खा-पी चुकने पर अपना गला काटता है

    खाल उधेड़ ख़ुद को हुक पर टाँग बूँद-बूँद

    टपकते ख़ून को नपने से नाप-नाप

    नाली में डालता है

    क़ायदे से हाथ पोंछ मेज़ पर

    अपने ही अँगों को छूता है तेज़

    कर छुरी की धार एक बार दो बार तीन बार

    किसी के पूछने से चौंकने के पहले

    वह होंठ अलग फेंक देता है मौत पर

    हँसने के लिए आँखें निकाल

    पीठ पीछे जड़ देता है

    क्रोध में मुँह बा कर

    दिखा देता है अपने ही कटे हुए हाथों में

    अपनी स्वतंत्रता के बीस साल

    अकाल

    मृत्यु टेंट से वसूली गई क्रांति

    से बड़ी हो आत्म-निर्भरता की छुरी

    धुरीहीनों को सौंप चाँदी की तश्तरी में

    नक़ली दाँत, मूँछ, पंजे रख उठ

    खड़ा होता है चोर—

    दरवाज़े से बाहर फिर रोबदार

    संतरी को घूस दे भीतर नक़ली दाँत, मूँछ, पंजे उठा

    उपलब्धि का अनुभव करता है

    और नए सिरे से रचना-कर्म में जुट जाने के पहले

    काएक नहले-दहले को याद कर

    घूम कर

    पीछे देखता है

    कि अरे दुम किधर गई?

    स्रोत :
    • पुस्तक : ज़ख़्म पर धूल (पृष्ठ 40)
    • रचनाकार : मलयज
    • प्रकाशन : रचना प्रकाशन
    • संस्करण : 1971

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