Font by Mehr Nastaliq Web

अधूरी नींद का गीत

adhuri neend ka geet

लवली गोस्वामी

लवली गोस्वामी

अधूरी नींद का गीत

लवली गोस्वामी

और अधिकलवली गोस्वामी

    तुम मिलते हो पूछते हो, “कैसी हो”?

    मैं कहती हूँ, “अच्छी हूँ...”

    (जबकि जवाब सिर्फ़ इतना है कि

    जिन रास्तों को नहीं मिलता उन पर चलने वालों का साथ

    उन्हें सूखे पत्ते भी ज़ुर्रत करके दफ़ना देते हैं)

    एक दिन इश्क़ में की माँगी गई तमाम रियायतें

    दूर से किसी को मुस्कुराते देख सकने तक सीमित हो जाती हैं

    मुश्क़िल यह है, यह इतनी-सी बात भी

    दुनिया भर के देवताओं मंज़ूर नहीं होती

    (देवता सिर्फ़ स्वर्गी जीव नहीं होते)

    मैं तुम्हारे लौटने की जगह हूँ

    (कोई यह सोचे कि जगहें हमेशा

    स्थिर और निष्क्रिय ही होती हैं)

    प्रेम को जितना समझ सकी मैं ये जाना

    प्रेम में कोई भी क्षण विदा का क्षण हो सकता है

    किसी भी पल डुबो सकती है धार

    अपने ऊपर अठखेलियाँ करती नाव को

    (यह कहकर मैं नाविकों का मनोबल नहीं तोड़ना चाहती

    लेकिन अधिकतर नावों को समुद्र लील जाते हैं)

    जिन्हें समुद्र डुबोए उन नावों के तख़्ते अंत में बस

    चूल्हे की आग बारने के काम आते हैं

    पानी की सहेली क्यों चाहेगी ऐसा जीवन

    जिसके अंत में आग मिले?

    (समुद्र का तल क्या नावों का निर्वाण नहीं है?

    जैसे

    डूबना या टूटना सिर्फ़ नकारात्मक शब्द नहीं हैं।)

    “तुम्हारे बिना नहीं जिया जाता मुझसे”

    यह वाक्य सिर्फ़ इसलिए तुमसे कभी कह सकी मैं

    क्योंकि तुम्हारे बिना मैं मर जाती ऐसा नहीं था

    (मुझे हमेशा से लगता है कि विपरीतार्थक शब्दों का चलन

    शब्दों की स्वतंत्र परिभाषा के ख़िलाफ़ एक क़िस्म की साज़िश है)

    हम इतने भावुक थे कि पढ़ सकते थे

    एक दूसरे के चेहरे पर किसी बीते प्रेम का दुःख

    मौजूदा आकर्षण की लिखावट

    (सवाल सिर्फ़ इतना था कि

    कहाँ से लाती मैं अवसान के दिनों में उठान की लय

    कहाँ से लाते तुम चीमड़ हो चुके मन में लोच की वय)

    ताज्जुब है कि मैं हारती हूँ, प्रेम हारता है

    मुझे विश्वास है कि तुम अपने लिए ढूँढ़कर लाओगे

    फिर से एक दिन छलकती ख़ुशी

    (मैं तुम्हें ख़ुश देखकर ख़ुश होऊँगी )

    एक दिन जब तुम उदास होगे

    तुम्हारे साथ मुट्ठी भर आँसू रोऊँगी

    (इन आँसुओं में बेशक मेरी भी नाकामियों की गंध मिली होगी)

    लेकिन फ़िलहाल

    इन सब बातों से अलग

    अभी तुम सो रहे हो

    तुम सो रहे हो

    जैसे प्रशांत महासागर में

    हवाई के द्वीप सोते हैं

    लहरों की अनगिनत दानवी दहाड़ों में घिरे

    पानी से ढँकी-उघरी देह लिए शांत सो रहे हो

    धरती का सब पानी रह-रह उमड़ता है

    तुम्हारी देह के कोर छूता है ख़ुद को धोता है

    तुमसे कंपनों का उपहार पाकर लौट जाता है

    स्याह बादल तुम पर झुकते, उमड़ते हैं

    बरसते हुए ही हारकर दूर चले जाते हैं

    तुम सुखद आश्चर्य की तरह शांत सो रहे हो

    मैं जाग रही हूँ अनावरण की बाट जोहते

    रहस्य की तरह अशांत।

    स्रोत :
    • रचनाकार : लवली गोस्वामी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता | 13-14-15 दिसम्बर 2024 - जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम, गेट नंबर 1, नई दिल्ली

    टिकट ख़रीदिए