अब भी आते हैं नींद में तुम्हारे सपने
ab bhi aate hain neend mein tumhare sapne
तुम्हारी जितनी स्मृतियाँ
मुझमें बची रहेंगी
उतना ही याद कर सकूँगा,
कभी-कभी
तुम लिखी हुई कविता की तरह बढ़ आती हो
मैं न लिखे गद्य की तरह सिमटता जाता हूँ
हमारे संवाद किसी भविष्य के लिए नहीं रहते
तब भी, हमारे बीच जो घटित होता है
वह मुझे नाटकीय नहीं लगता
यह जीवन है
इसे जीने की कला
तुमसे भी सीखी
यह जान लो
(अब किस तरह संबोधित करूँ तुम्हें!)
अपनी कमज़ोर याददाश्त के बावज़ूद
तुम्हें याद रखने के लिए
अब भी आते हैं नींद में तुम्हारे सपने
टूटी हुई नींद के साथ जब जगता हूँ
मुझे लगता है
तुम्हारी नींद में ख़लल पड़ गया होगा।
- रचनाकार : राजकुमार
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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