सबद संग्रह
गोरखनाथ के ‘सबदी’ को
बाद के संत कवियों ने ‘सबद’ बना लिया। संतों की आत्मानुभूति ‘सबद’ कहलाती है। सबद गेय होते हैं और राग-रागिनियों में बंधे हुए होते हैं। ‘सबद’ का प्रयोग आंतरिक अनुभव-आह्लाद के व्यक्तीकरण के लिए किया जाता है।
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere