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फल जातक

phal jatak

अज्ञात

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    वाराणसी के राजा ब्रह्मदत के समय में बोधिसत्व ने एक श्रेष्ठि-कुल में जन्म लिया था। वयस्क होने पर वे पाँच सौ बैलगाड़ियों पर माल लादकर इधर-उधर वाणिज्य करने के लिए जाया करते थे। एक दिन वे किसी बहुत बड़े जंगल के पास पहुँचे। गंतव्य स्थान तक पहुँचने के लिए उनको उसी जंगल में से जाना पड़ता था; इसलिए उन्होंने अपने अनुचरों को बुलाकर कहा—सुनते हैं कि इस वन में विप-वृक्ष हैं। इसलिए तुम लोग सावधान रहना और बिना मुझसे पूछे कोई ऐसा फल, मूल या पत्र आदि न खाना जो तुमने पहले देखा न हो या जिसे तुम पहले से जानते न हो। सब लोगों ने उनकी यह बात स्वीकृत कर ली। इसके उपरांत सब लोगों ने वन में प्रवेश किया।

    उस वन की सीमा के पास ही एक गाँव था और उस गाँव के बाहर एक किंफल1 वृक्ष था। कांड, शाखा, पत्र, पुष्प और फल सभी बातों में वह किंफल वृक्ष आम के वृक्ष के समान था। केवल देखने में ही नहीं, बल्कि स्वाद और गंध आदि में भी उसके कच्चे और पक्के फल बिल्कुल आम के फलों के ही समान थे। पर पेट में पहुँचते ही वे फल हलाहल के समान अपना प्रभाव दिखलाते थे ओर खानेवाले का प्राणांत कर देते थे।

    बोधिसत्व के कई पेटू अनुचर दल के आगे-आगे चल रहे थे। उनमें से कुछ ने किंफल को आम समझकर खा लिया। पर बहुतों ने यही सोचा कि बिना बोधिसत्व से पूछे यहाँ कुछ खाना उचित नहीं। इसलिए वे फल हाथ में लेकर बैठे रहे। जब बोधिसत्व आए, तब उन्होंने पूछा—आर्य, क्या हम लोग यह फल खा सकते हैं? बोधिसत्व ने कहा—यह आम नहीं है, नहीं खाना चाहिए। इसके पहले जिन लोगों ने वह फल खाया था, उनको बोधिसत्व ने वमन कराया और चतुर्मधुर खिलाया। इस प्रकार वे लोग आरोग्य हुए।

    इसके पहले अनेक सार्थवाहों ने उस वृक्ष के नीचे बैठकर उसका फल खाया था और वे लोग मृत्यु मुख में पड़ चुके थे। दूसरे दिन गाँव वाले वहाँ जाकर उन लोगों के मृत शरीर देखा करते थे, उन शरीरों को पैर पकड़कर घसीटते हुए किसी एकांत स्थान में फेंक दिया करते थे और उनकी बैल-गाड़ियों तथा उन पर लदा हुआ माल लेकर चल दिया करते थे।

    उस दिन भी वे लोग प्रभात होने पर माल लुटने के विचार से उस वृक्ष के पास आ पहुँचे कि मैं बैल लूँगा; कोई कहता मार्ग में उनमें से कोई कहता था कि मैं गाड़ियाँ लूँगा; और कोई कहता था कि मैं माल लूँगा। पर जब वृक्ष के पास पहुँचकर उन लोगों ने देखा कि एक आदमी भी नहीं मरा, तब वे निराश होकर पूछने लगे—यह तुम लोगों ने किस तरह जाना कि यह आम का वृक्ष नहीं है? बोधिसत्व के सेवक कहने लगे—हम लोगों ने तो नहीं जाना, पर सार्थवाह ने जान लिया था। इसपर गाँववालों ने बोधिसत्व के पास जाकर पूछा—पंडितवर, आपने यह किस प्रकार निश्चय किया कि यह आम का फल नहीं है?

    बोधिसत्व ने उत्तर दिया—मैंने दो कारणों से यह जाना कि यह आम का फल नहीं है। एक तो यह कि यह गाँव के बाहर था; और दूसरे यह कि इस पर चढ़ना कोई कठिन नहीं था और इतना होने पर भी यह फलों के बोझ से झुका पड़ता था (जिससे सिद्ध होता था कि इनके फल कोई खाता नहीं)। इसलिए मैंने समझ लिया कि यह सुफल नहीं है और इसके खाने से अवश्य ही मृत्यु होगी।

    इसके उपरांत उपस्थित लोगों को धर्मोपदेश देकर बोधिसत्व अपने उद्दिष्ट स्थान की ओर चले गए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जातक कथा-माला, पहला भाग (पृष्ठ 93)
    • प्रकाशन : साहित्य-रत्नमाला कार्यालय

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