प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।
दुर्योधन को अर्जुन का पीछा करते देखकर पांडव सेना ने शत्रुओं पर और भी ज़ोर का हमला कर दिया। धृष्टद्युम्न ने सोचा कि जयद्रथ की रक्षा करने हेतु यदि द्रोण भी चले गए, तो अनर्थ हो जाएगा। इस कारण द्रोणाचार्य को रोके रखने के इरादे से उसने द्रोण पर लगातार आक्रमण जारी रखा। धृष्टद्युम्न की इस चाल के कारण कौरव सेना तीन हिस्सों में बँटकर कमज़ोर पड़ गई।
इतने में धृष्टद्युम्न उछलकर द्रोणाचार्य के रथ पर जा चढ़ा और विक्षिप्त-सा होकर द्रोण पर वार करने लगा। धुष्टद्युम्न का हमला जारी रहा। अंत में द्रोण ने क्रोध में आकर एक अत्यधिक पैना बाण चलाया। वह पांचालकुमार के प्राण ही ले लेता, यदि सात्यकि का बाण उसे बीच में ही पुनः न काट देता। अचानक सात्यकि के बाण रोक लेने पर द्रोण का ध्यान उसकी ओर चला गया। इसी बीच पांचाल-सेना के रथसवार धृष्टद्युम्न को वहाँ से हटा ले गए। परंतु सात्यकि भी कोई मामूली वीर नहीं था। पांडव-सेना के सबसे चतुर योद्धाओं में उसका स्थान था। जब उसने द्रोणाचार्य को अपनी ओर झपटते देखा, तो वह ख़ुद भी उनकी ओर झपटा। इस तरह बहुत देर तक दोनों वीर लड़ते रहे।
इसी बीच युधिष्ठिर को पता चला कि सात्यकि पर संकट आया हुआ है, तो वह अपने आसपास के वीरों से बोले—“कुशल योद्धा, नरोत्तम और सच्चे वीर सात्यकि आचार्य द्रोण के बाणों से बहुत ही पीड़ित हो रहे हैं। चलो, हम लोग उधर चलकर उस वीर महारथी की सहायता करें।”
उसके बाद वह धृष्टद्युम्न से बोले—“द्रुपद-कुमार! आपको अभी जाकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण करना चाहिए, नहीं तो डर है कि कहीं आचार्य के हाथों सात्यकि का वध न हो जाए। युधिष्ठिर ने द्रोण पर हमला करने के लिए धृष्टद्युम्न के साथ एक बड़ी सेना भेज दी। समय पर कुमुक के पहुँच जाने पर भी बड़े परिश्रम के बाद ही सात्यकि को द्रोण के फँदे से छुड़ाया जा सका।
इसी समय श्रीकृष्ण के पांचजन्य की ध्वनि सुनाई दी। वह आवाज़ सुनकर युधिष्ठिर चिंतित हो गए। “इस घड़ी अर्जुन की सहायता को चले जाओ”, इतना कहते-कहते युधिष्ठिर बहुत ही अधीर हो उठे। युधिष्ठिर के इस प्रकार आग्रह करने पर सात्यकि ने बड़ी नम्रता से कहा “युधिष्ठिर! द्रोण की प्रतिज्ञा तो आप जानते ही हैं। अतः आपकी रक्षा का भार हमारे ऊपर है। महाराज, वासुदेव और अर्जुन मुझे यह आदेश दे गए हैं और मुझ पर भरोसा करके यह भारी ज़िम्मेदारी डाल गए हैं। मैं उनकी बात को कैसे टालूँ? आप अर्जुन की ज़रा भी चिंता न करें। अर्जुन को कोई नहीं जीत सकता।”
उधर जैसे ही सात्यकि युधिष्ठिर को छोड़कर अर्जुन की ओर चला, वैसे ही द्रोणाचार्य ने पांडव सेना पर हमले करने शुरू कर दिए। पांडव सेना की पंक्तियाँ कई जगह से टूट गईं और उन्हें पीछे हटना पड़ गया। यह देखकर युधिष्ठिर बड़े चिंतित हो उठे और बोले—“भीम, मेरा कहा मानो तो तुम भी अर्जुन के पास चले जाओ और सात्यकि तथा अर्जुन का हालचाल मालूम करो। इसके लिए जो कुछ करना ज़रूरी हो, वह करके वापस आकर मुझे सूचना दो। मेरा कहना मानकर ही सात्यकि अर्जुन की सहायता को कौरव-सेना से युद्ध करता हुआ गया है। यदि तुम उनको कुशलपूर्वक पाओ तो सिंहनाद करना। मैं समझ लूँगा कि सब कुशल है।”
भीमसेन ने युधिष्ठिर की बात का प्रतिवाद नहीं किया और वह धृष्टद्युम्न से बोला—“आचार्य द्रोण के इरादे से तो आप परिचित हैं ही। किसी-न-किसी तरह भ्राता युधिष्ठिर को जीवित पकड़ने का उनका प्रण है। राजा की रक्षा करना ही हमारा प्रथम कर्तव्य है। जब वह स्वयं मुझे जाने की आज्ञा दे रहे हैं, तो उसका भी पालन करना मेरा धर्म हो जाता है। इस कारण भ्राता युधिष्ठिर को आपके ही भरोसे पर छोड़कर जा रहा हूँ। इनकी भली-भाँति रक्षा कीजिएगा।”
धृष्टद्युम्न ने कहा—“तुम किसी प्रकार की चिंता न करो और निश्चित होकर जाओ। विश्वास रखो कि द्रोण मेरा वध किए बिना युधिष्ठिर को नहीं पकड़ सकेंगे।” आचार्य द्रोण के जन्म के बैरी धृष्टद्युम्न के इस प्रकार विश्वास दिलाने पर भीम निश्चित होकर तेज़ी से अर्जुन की तरफ़ चल दिया।
जितने भी सैन्यदल मुक़ाबला करने आए, उन्हें मारता-गिराता हुआ भीम अंत में उस स्थान पर पहुँच गया, जहाँ अर्जुन जयद्रथ की सेना से लड़ रहा था।
अर्जुन को सुरक्षित देखते ही भीमसेन ने सिंहनाद किया। भीम का सिंहनाद सुनकर श्रीकृष्ण और अर्जुन आनंद के मारे उछल पड़े और उन्होंने भी ज़ोरों से सिंहनाद किया। इन सिंहनादों को सुनकर युधिष्ठिर बहुत ही प्रसन्न हुए। उनके मन से शोक के बादल हट गए। उन्होंने अर्जुन को मन-ही-मन आशीर्वाद दिया। वह सोचने लगे—अभी सूरज डूबने से पहले अर्जुन अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर लेगा और जयद्रथ का वध करके लौट आएगा। हो सकता है, जयद्रथ के वध के बाद दुर्योधन शायद संधि कर ले। इधर युधिष्ठिर मन-ही-मन शांति स्थापना की कामना कर रहे थे और उधर मोर्चे पर जहाँ भीम, सात्यकि और अर्जुन थे, वहाँ घोर संग्राम हो रहा था।
थोड़े ही समय में जिस स्थान पर अर्जुन और जयद्रथ का युद्ध हो रहा था, दुर्योधन भी वहाँ आ पहुँचा मगर थोड़ी ही देर में बुरी तरह हारकर मैदान छोड़कर भाग खड़ा हुआ। इस भाँति उस रोज़ कई मोर्चों पर ज़ोरों से युद्ध हो रहा था।
द्रोण ने कहा—“बेटा दुर्योधन, तुम्हें हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। तुम जयद्रथ की सहायता के लिए जाओ और वहाँ जो कुछ करना आवश्यक हो, वह करो।” आचार्य के कहने-सुनने पर दुर्योधन कुछ सेना लेकर फिर से लड़ाई के उस मोर्चे पर चला गया, जहाँ अर्जुन और जयद्रथ में ज़ोरों की लड़ाई हो रही थी। उस दिन भीम और कर्ण में जो युद्ध हुआ, वह एक रोमांचकारी घटना के रूप में वर्णित है। भीमसेन उत्तेजना और उग्रता की प्रतिमूर्ति-सा दिखाई दे रहा था। कर्ण जो कुछ करता, धीरज और व्यवस्था के साथ शांतभाव से करता, किंतु भीम को तो थोड़ा-सा भी अपमान असह्य हो जाता था।
दोनों ही बड़े वीर थे। वे एक-दूसरे पर झपटकर आघात करने लगे। भीमसेन को उस समय पिछले घोर अपमानों, यातनाओं और मुसीबतों की याद हो आई, जो उसे, उसके भाइयों और द्रौपदी को पहुँचाई गई थीं। प्राणों का मोह छोड़कर वह लड़ने लगा। उस समय भीमसेन का घावों से भरा हुआ शरीर धधकती हुई आग-सा प्रतीत हो रहा था।
कर्ण और भीम के युद्ध में इस बार भीमसेन के रथ के घोड़े मारे गए। सारथी भी कटकर गिर पड़ा। रथ टूट-फूट गया और धनुष भी कट गया। भीम ने ढाल-तलवार ले ली और जान झोंककर लड़ने लगा। पलक झपकते ही कर्ण ने उसकी ढाल के भी टुकड़े-टुकड़े कर दिए। जब ढाल भी न रही तो कर्ण ने भीम को ख़ूब परेशान किया। इससे भीम बहुत ही पीड़ित हुआ। उसे असीम क्रोध आया। वह उछलकर कर्ण के रथ पर जा कूदा। कर्ण ने रथ के ध्वजस्तंभ की आड़ लेकर भीमसेन की झपट से अपने को बचा लिया। भीम नीचे ज़मीन पर कूद पड़ा और विलक्षण युद्ध करने लगा। मैदान में जो रथ के पहिए घोड़े, हाथी आदि पड़े हुए थे, उन्हीं को उठा-उठाकर वह कर्ण पर फेंकता गया, जिससे उसे क्षणभर भी आराम न मिल पाया। उस समय कर्ण चाहता तो वह भीम को आसानी से मार सकता था, पर निहत्थे भीम को उसने मारना नहीं चाहा। माता कुंती को दिया हुआ वचन भी उसे याद था कि वह अर्जुन के अतिरिक्त और किसी को युद्ध में न मारेगा।
duryodhan ko arjun ka pichha karte dekhkar panDav sena ne shatruon par aur bhi zor ka hamla kar diya. dhrishtadyumn ne socha ki jayadrath ki raksha karne hetu yadi dron bhi chale ge, to anarth ho jayega. is karan dronacharya ko roke rakhne ke irade se usne dron par lagatar akrman jari rakha. dhrishtadyumn ki is chaal ke karan kaurav sena teen hisson mein bantakar kamzor paD gai.
itne mein dhrishtadyumn uchhalkar dronacharya ke rath par ja chaDha aur vikshipt sa hokar dron par vaar karne laga. dhushtadyumn ka hamla jari raha. ant mein dron ne krodh mein aakar ek atyadhik paina baan chalaya. wo panchalakumar ke praan hi le leta, yadi satyaki ka baan use beech mein hi punः na kaat deta. achanak satyaki ke baan rok lene par dron ka dhyaan uski or chala gaya. isi beech panchal sena ke rathasvar dhrishtadyumn ko vahan se hata le ge. parantu satyaki bhi koi mamuli veer nahin tha. panDav sena ke sabse chatur yoddhaon mein uska sthaan tha. jab usne dronacharya ko apni or jhapatte dekha, to wo khud bhi unki or jhapta. is tarah bahut der tak donon veer laDte rahe.
isi beech yudhishthir ko pata chala ki satyaki par sankat aaya hua hai, to wo apne asapas ke viron se bole—“kushal yoddha, narottam aur sachche veer satyaki acharya dron ke banon e bahut hi piDit ho rahe hain. chalo, hum log udhar chalkar us veer maharathi ki sahayata karen. ”
uske baad wo dhrishtadyumn se bole—“drupad kumar! aapko abhi jakar dronacharya par akrman karna chahiye, nahin to Dar hai ki kahin acharya ke hathon satyaki ka vadh na ho jaye. yudhishthir ne dron par hamla karne ke liye dhrishtadyumn ke saath ek baDi sena bhej di. samay par kumuk ke pahunch jane par bhi baDe parishram ke baad hi satyaki ko dron ke phande se chhuDaya ja saka.
isi samay shrikrishn ke panchjanya ki dhvani sunai di. wo avaz sunkar yudhishthir chintit ho ge. “is ghaDi arjun ki sahayata ko chale jao”, itna kahte kahte yudhishthir bahut hi adhir ho uthe. yudhishthir ke is prakar agrah karne par satyaki ne baDi namrata se kaha “yudhishthir! dron ki prtigya to aap jante hi hain. atः apaki raksha ka bhaar hamare uupar hai. maharaj, vasudev aur arjun mujhe ye adesh de ge hain aur mujh par bharosa karke ye bhari zimmedari Daal ge hain. main unki baat ko kaise talun? aap arjun ki zara bhi chinta na karen. arjun ko koi nahin jeet sakta. ”
udhar jaise hi satyaki yudhishthir ko chhoDkar arjun ki or chala, vaise hi dronacharya ne panDav sena par hamle karne shuru kar diye. panDav sena ki panktiyan kai jagah se toot gain aur unhen pichhe hatna paD gaya. ye dekhkar yudhishthir baDe chintit ho uthe aur bole—“bhim, mera kaha mano to tum bhi arjun ke paas chale jao aur satyaki tatha arjun ka halachal malum karo. iske liye jo kuch karna zaruri ho, wo karke vapas aakar mujhe suchana do. mera kahna mankar hi satyaki arjun ki sahayata ko kaurav sena se yuddh karta hua gaya hai. yadi tum unko kushalpurvak pao to sinhnad karna. main samajh lunga ki sab kushal hai. ”
bhimasen ne yudhishthir ki baat ka prativad nahin kiya aur wo dhrishtadyumn se bola—“acharya dron ke irade se to aap parichit hain hi. kisi na kisi tarah bhrata yudhishthir ko jivit pakaDne ka unka pran hai. raja ki raksha karna hi hamara pratham kartavya hai. jab wo svayan mujhe jane ki aagya de rahe hain, to uska bhi palan karna mera dharm ho jata hai. is karan bhrata yudhishthir ko aapke hi bharose par chhoDkar ja raha hoon. inki bhali bhanti raksha kijiyega. ”
dhrishtadyumn ne kaha—“tum kisi prakar ki chinta na karo aur nishchit hokar jao. vishvas rakho ki dron mera vadh kiye bina yudhishthir ko nahin pakaD sakenge. ” acharya dron ke janm ke bairi dhrishtadyumn ke is prakar vishvas dilane par bheem nishchit hokar tezi se arjun ki taraf chal diya.
jitne bhi sainydal muqabala karne aaye, unhen marta girata hua bheem ant mein us sthaan par pahunch gaya, jahan arjun jayadrath ki sena se laD raha tha.
arjun ko surakshit dekhte hi bhimasen ne sinhnad kiya. bheem ka sinhnad sunkar shrikrishn aur arjun anand ke mare uchhal paDe aur unhonne bhi zoron se sinhnad kiya. in sinhnadon ko sunkar yudhishthir bahut hi prasann hue. unke man se shok ke badal hat ge. unhonne arjun ko man hi man ashirvad diya. wo sochne lage—abhi suraj Dubne se pahle arjun apni prtigya puri kar lega aur jayadrath ka vadh karke laut ayega. ho sakta hai, jayadrath ke vadh ke baad duryodhan shayad sandhi kar le. idhar yudhishthir man hi man shanti sthapana ki kamna kar rahe the aur udhar morche par jahan bheem, satyaki aur arjun the, vahan ghor sangram ho raha tha.
thoDe hi samay mein jis sthaan par arjun aur jayadrath ka yuddh ho raha tha, duryodhan bhi vahan aa pahuncha magar thoDi hi der mein buri tarah harkar maidan chhoDkar bhaag khaDa hua. is bhanti us roz kai morchon par zoron se yuddh ho raha tha.
dron ne kaha—“beta duryodhan, tumhein himmat nahin harni chahiye. tum jayadrath ki sahayata ke liye jao aur vahan jo kuch karna avashyak ho, wo karo. ” acharya ke kahne sunne par duryodhan kuch sena lekar phir se laDai ke us morche par chala gaya, jahan arjun aur jayadrath mein zoron ki laDai ho rahi thi. us din bheem aur karn mein jo yuddh hua, wo ek romanchkari ghatna ke roop mein varnit hai. bhimasen uttejna aur ugrata ki pratimurti sa dikhai de raha tha. karn jo kuch karta, dhiraj aur vyavastha ke saath shantbhav se karta, kintu bheem ko to thoDa sa bhi apman asahya ho jata tha.
donon hi baDe veer the. ve ek dusre par jhapatkar aghat karne lage. bhimasen ko us samay pichhle ghor apmanon, yatnaon aur musibton ki yaad ho aai, jo use, uske bhaiyon aur draupadi ko pahunchai gai theen. pranon ka moh chhoDkar wo laDne laga. us samay bhimasen ka ghavon se bhara hua sharir dhadhakti hui aag sa pratit ho raha tha.
karn aur bheem ke yuddh mein is baar bhimasen ke rath ke ghoDe mare ge. sarthi bhi katkar gir paDa. rath toot phoot gaya aur dhanush bhi kat gaya. bheem ne Dhaal talvar le li aur jaan jhonkkar laDne laga. palak jhapakte hi karn ne uski Dhaal ke bhi tukDe tukDe kar diye. jab Dhaal bhi na rahi to karn ne bheem ko khoob pareshan kiya. isse bheem bahut hi piDit hua. use asim krodh aaya. wo uchhalkar karn ke rath par ja kuda. karn ne rath ke dhvjastambh ki aaD lekar bhimasen ki jhapat se apne ko bacha liya. bheem niche zamin par kood paDa aur vilakshan yuddh karne laga. maidan mein jo rath ke pahiye ghoDe, hathi aadi paDe hue the, unhin ko utha uthakar wo karn par phenkta gaya, jisse use kshanbhar bhi aram na mil paya. us samay karn chahta to wo bheem ko asani se maar sakta tha, par nihatthe bheem ko usne marana nahin chaha. mata kunti ko diya hua vachan bhi use yaad tha ki wo arjun ke atirikt aur kisi ko yuddh mein na marega.
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हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।
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