Font by Mehr Nastaliq Web

बाल महाभारत : भूरिश्रवा, जयद्रथ और आचार्य द्रोण का अंत

baal mahabharat bhurishrva, jayadrath aur acharya dron ka ant

चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य

चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य

बाल महाभारत : भूरिश्रवा, जयद्रथ और आचार्य द्रोण का अंत

चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य

और अधिकचक्रवर्ती राजगोपालाचार्य

    नोट

    प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

    उधर अर्जुन सिंधुराज जयद्रथ के साथ युद्ध कर रहा था और उसका वध करने के मौक़े की तलाश में था। इतने में भूरिश्रवा ने सात्यकि को ऊपर उठाया और ज़मीन पर ज़ोर से दे पटका। कौरव-सेना ज़ोरों से कोलाहल कर उठी—“सात्यकि मारा गया।”

    अर्जुन ने देखा कि मैदान में मृत-से पड़े सात्यकि को भूरिश्रवा घसीट रहा है। यह देखकर अर्जुन भारी असमंजस में पड़ गया। उसे कुछ नहीं सूझा कि क्या किया जाए। वह श्रीकृष्ण से बोला—“कृष्ण, भूरिश्रवा मुझसे लड़ नहीं रहा है। दूसरे के साथ लड़ने वाले पर कैसे बाण चलाऊँ?”

    अर्जुन इस प्रकार श्रीकृष्ण से बातें कर ही रहा था कि इतने में जयद्रथ द्वारा छोड़े गए बाणों के समूह आकाश में छा गए। इस पर अर्जुन ने बातें करते-करते ही जयद्रथ पर बाणों की बौछार जारी रखी।

    ज्योंही अर्जुन ने सात्यकि की ओर मुड़कर देखा तो पाया कि सात्यकि ज़मीन पर पड़ा हुआ था और भूरिश्रवा उसके शरीर को एक पाँव से दबाकर और दाहिने हाथ में तलवार लेकर उस पर वार करने को उद्यत ही था। यह देखकर अर्जुन से रहा गया। उसने उसी क्षण भूरिश्रवा पर तानकर बाण चलाया। बाण लगते ही भूरिश्रवा का दाहिना हाथ कटकर तलवार समेत दूर ज़मीन पर जा गिरा।

    अपना हाथ कट जाने पर जब भूरिश्रवा ने कृष्ण की निंदा की, तो अर्जुन बोला—“वृद्ध भूरिश्रवा ! तुमने मेरे प्रिय मित्र सात्यकि का वध करने की कोशिश की है और वह भी उस समय जबकि वह घायल और अचेत-सा होकर ज़मीन पर निःशस्त्र पड़ा हुआ था। उस अवस्था में तुमने उसे तलवार से मारना चाहा। जिसके हथियार टूट चुके थे, कवच नष्ट हो चुका था और जो इतना थका हुआ था कि जिसके लिए खड़ा रहना भी दूभर था, ऐसे मेरे कोमल बालक अभिमन्यु का वध होने पर तुम सभी लोगों ने विजयोत्सव मनाया था। तुम्हीं बताओ कि ऐसा करना किस धर्म के अनुसार उचित था?”

    अर्जुन के इस प्रकार मुँहतोड़ जवाब देने पर भूरिश्रवा युद्ध के मैदान में शरों को फैलाकर और आसन जमाकर बैठ गया। उसने वहीं आमरण अनशन शुरू कर दिया। यह सब देखकर अर्जुन बोला—“वीरो! तुम सब मेरी प्रतिज्ञा जानते हो। मेरे बाणों की पहुँच तक अपने किसी भी मित्र या साथी का शत्रु के हाथों वध होने देने का प्रण मैंने कर रखा है। इसलिए सात्यकि की रक्षा करना मेरा धर्म था।” अर्जुन की ये बातें सुनकर भूरिश्रवा ने भी शांति से सिर नवाया और ज़मीन पर टेक दिया। इन बातों में कोई दो घड़ी का समय बीत गया था। सब लोगों के मना करते हुए भी सात्यकि ने भूरिश्रवा का सिर धड़ से अलग कर दिया।

    सात्यकि के कार्य को सबने निकृष्ट कहकर धिक्कारा लड़ाई के मैदान में जिस ढंग से भूरिश्रवा का वध हुआ था, उसे किसी ने भी उचित नहीं माना।

    कौरव-सेना को तितर-बितर करता हुआ अर्जुन जयद्रथ के पास आख़िर पहुँच ही गया, परंतु जयद्रथ भी कोई साधारण वीर नहीं था। वह सुविख्यात योद्धा था। वह डटकर लड़ने लगा। उसे हराना अर्जुन के लिए भी सुगम था। बड़ी देर तक युद्ध होता रहा। दोनों पक्षों के वीर सूर्य की ओर बार-बार देखने लगे। धीरे-धीरे पश्चिम में लालिमा छाने लगी और सूर्यास्त का समय भी नज़दीक आने लगा, परंतु जयद्रथ और अर्जुन का युद्ध समाप्त होने के कोई लक्षण नज़र नहीं आते थे।

    यह देखकर दुर्योधन के मन में आनंद की लहर उठने लगी। उसने सोचा कि अब ज़रा सी देर और है। जयद्रथ तो बच ही गया और अर्जुन की प्रतिज्ञा विफल हुई-सी है। जयद्रथ ने भी पश्चिम की ओर देखते हुए मन में कहा—“चलो, प्राण बचे!”

    इसी बीच श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा—“अर्जुन! जयद्रथ सूर्य की तरफ़ देखने में लगा है और मन में समझ रहा है कि सूर्य डूब गया। परंतु अभी तो सूर्य डूबा नहीं है। अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का तुम्हारे लिए यही अवसर है।”

    श्रीकृष्ण के ये वचन अर्जुन के कान में पड़े ही थे कि अर्जुन के गांडीव से एक तेज़ बाण छूटा और जयद्रथ के सिर को उड़ा ले गया। श्रीकृष्ण ने समय पर ही एक चेतावनी अर्जुन को दे दी थी कि जयद्रथ के सिर को ज़मीन पर नहीं गिरने देना है। अर्जुन ने ऐसा ही किया। जयद्रथ के पिता राजा वृद्धक्षत्र अपने आश्रम में बैठे संध्या वंदना कर रहे थे कि इतने में जयद्रथ का सिर ध्यानमग्न राजा की गोद में जा गिरा। ध्यान समाप्त होने पर जब वृद्धक्षत्र की आँखें खुलीं और वह उठे, तो जयद्रथ का सिर उनकी गोद से ज़मीन पर गिर पड़ा उसी क्षण बूढ़े वृद्धक्षत्र के सिर के भी सौ टुकड़े हो गए।

    जब युधिष्ठिर ने जान लिया कि अर्जुन के हाथों जयद्रथ का वध हो गया है, तो उन सबके आनंद की सीमा रही। इसके बाद तो युधिष्ठिर दूने उत्साह के साथ सारी पांडव सेना को लेकर आचार्य द्रोण पर टूट पड़े। चौदहवें दिन का युद्ध केवल सूर्यास्त तक ही नहीं हुआ, बल्कि रात को भी होता रहा। घटोत्कच भीमसेन का हिडिंबा से उत्पन्न पुत्र था। कर्ण और घटोत्कच में उस रात बड़ा भयानक युद्ध हुआ। घटोत्कच ने कर्ण को भी इतनी पीड़ा पहुँचाई थी कि वह आपे में रहा और इंद्र की दी हुई शक्ति का, जिसे उसने अर्जुन का वध करने के उद्देश्य से यत्नपूर्वक सुरक्षित रखा था, घटोत्कच पर प्रयोग कर दिया। इससे अर्जुन का संकट तो टल गया, परंतु भीमसेन का प्रिय एवं वीर पुत्र घटोत्कच मारा गया। पांडवों के दुख की सीमा रही। इतने पर भी युद्ध बंद नहीं हुआ। द्रोणाचार्य के धनुष से बाणों की तीव्र बौछार से पांडव सेना के असंख्य वीर कट-कटकर गिरते जाते थे।

    यह देखकर श्रीकृष्ण अर्जुन से बोले—“अर्जुन! कुछ कुचक्र रचकर ही इनको परास्त करना होगा। आज अगर परास्त हुए तो ये हमारा सर्वनाश कर देंगे। इसलिए किसी को आचार्य के पास जाकर यह ख़बर पहुँचानी चाहिए कि अश्वत्थामा मारा गया।” युधिष्ठिर ने काफ़ी सोच-विचार के बाद कहा कि यह पाप मैं अपने ही ऊपर लेता हूँ। इस व्यवस्था के अनुसार भीम ने गदा-प्रहार से अश्वत्थामा नाम के एक भारी लड़ाके हाथी को मार डाला। फिर द्रोण की सेना के पास जाकर ज़ोर से चिल्लाने लगा—“मैंने अश्वत्थामा को मारा डाला है।”

    उधर युद्ध करते हुए द्रोणाचार्य ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना ही चाहते थे कि उन्होंने सुना कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया। वह विचलित हो गए। साथ ही उन्हें इस बात की सच्चाई पर भी शक हुआ। उन्होंने युधिष्ठिर से पूछा। आचार्य द्रोण को विश्वास था कि युधिष्ठिर झूठ नहीं बोलेंगे।

    युधिष्ठिर असत्य बोलते हुए डरे, पर विजय प्राप्त करने की लालसा में किसी तरह जी कड़ा करके जोर से बोले—“हाँ, अश्वत्थामा मारा गया। परंतु यह कहते-कहते अंत में धीमे स्वर में यह भी कह दिया कि—“मनुष्य नहीं, हाथी।” इसके साथ ही भीम तथा अन्य पांडवों ने ज़ोरों का शंखनाद और सिंहनाद किया, जिससे युधिष्ठिर के अंतिम वचन उस शोर में लुप्त हो गए।

    युधिष्ठिर के मुँह से यह सुनते ही चारों ओर हाहाकार मच गया और इसी हाहाकार के बीच धृष्टद्युम्न ने ध्यानमग्न आचार्य की गरदन पर खड्ग से ज़ोर का वार किया। आचार्य द्रोण का सिर तत्काल ही धड़ से अलग होकर गिर पड़ा।

    वीडियो
    This video is playing from YouTube

    Videos
    This video is playing from YouTube

    चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य

    चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य

    स्रोत :
    • पुस्तक : बाल महाभारत कथा (पृष्ठ 86)
    • रचनाकार : चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
    • प्रकाशन : एनसीईआरटी
    • संस्करण : 2022
    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    Rekhta Gujarati Utsav I Vadodara - 5th Jan 25 I Mumbai - 11th Jan 25 I Bhavnagar - 19th Jan 25

    Register for free