प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।
सब अपना-अपना भेष बदलकर राजा विराट के यहाँ चाकरी करने गए, तो विराट ने उन्हें अपना नौकर बनाकर रखना उचित न समझा। हर एक के बारे में उनका यही विचार था कि ये तो राज करने योग्य प्रतीत होते हैं। मन में शंका तो हुई, पर पांडव के बहुत आग्रह करने और विश्वास दिलाने पर राजा ने उन्हें अपनी सेवा में ले लिया। पांडव अपनी-अपनी पसंद के कामों पर नियुक्त कर लिए गए। युधिष्ठिर ‘कंक’ के नाम से विराट के दरबारी बन गए और राजा के साथ चौपड़ खेलकर दिन बिताने लगे। भीमसेन ‘वल्लभ’ के नाम से रसोइयों का मुखिया बनकर रहने लगा। वह कभी-कभी मशहूर पहलवानों से कुश्ती लड़कर या हिंस्त्र जंतुओं को वश में करके राजा का दिल बहलाया करता था। अर्जुन स्त्री के वेश में ‘बृहन्नला’ के नाम से रनवास की स्त्रियों, खासकर विराट की कन्या उत्तरा और उसकी सहेलियों एवं दास-दासियों को नाच और गाना-बजाना सिखलाने लगा। उनकी बीमारियों का इलाज करने और उनकी देखभाल करने में अपनी चतुरता का परिचय देते हुए राजा को ख़ुश करता रहा। सहदेव ‘तंतिपाल’ के रूप में गाय-बैलों की देखभाल करता रहा। पांचाल-राजा की पुत्री द्रौपदी, जिसकी सेवा-टहल के लिए कितनी ही दासियाँ रहती थीं, अब अपने पतियों की प्रतिज्ञा पूरी करने हेतु दूसरी रानी की आज्ञाकारिणी दासी बन गई। विराट की पत्नी सुदेष्णा की सेवा-सुश्रूषा करती हुई रनवास में ‘सैरंध्री’ के नाम से काम करने लगे।
रानी सुदेष्णा का भाई कीचक बड़ा ही बलिष्ठ और प्रतापी वीर था। मत्स्य देश की सेना का वही नायक बना हुआ था और अपने कुल के लोगों को साथ कीचक ने बूढ़े विराटराज की शक्ति और सत्ता में ख़ूब वृद्धि कर दी थी। कीचक की धाक लोगों पर जमी हुई थी। लोग कहा करते थे कि मत्स्य देश का राजा तो कीचक है, विराट नहीं। यहाँ तक कि स्वयं विराट भी कीचक से डरा करते थे और उसका कहा मानते थे। जब से पांडवों के बारह बरस के वनवास की अवधि पूरी हुई थी, तभी से दुर्योधन के गुप्तचरों ने पांडवों की खोज करनी शुरू कर दी थी खोज इन्हीं दिनों हस्तिनापुर में कीचक के मारे जाने की ख़बर पाते ही दुर्योधन का माथा ठनका कि हो-न-हो कीचक का वध भीम ने ही किया होगा। यह दुर्योधन का अनुमान था। उसने अपना यह विचार राजसभा में प्रकट करते हुए कहा—“मेरा ख़याल है कि पांडव विराट के नगर में ही छिपे हुए हैं। मुझे तो यही ठीक लगता है कि पांडव वहाँ होंगे, तो निश्चय ही विराट की तरफ़ से हमसे लड़ने आएँगे। यदि हम अज्ञातवास की अवधि पूरी होने से पहले ही उनका पता लगा लेंगे, तो शर्त के अनुसार उन्हें बारह बरस के लिए फिर से वनवास करना होगा। यदि पांडव विराट के यहाँ न भी हुए, तो भी हमारा कुछ नहीं बिगड़ेगा। हमारे तो दोनों हाथों में लड्डू हैं।”
दुर्योधन की यह बात सुनकर त्रिगर्त देश का राजा सुशर्मा उठा और बोला—“राजन्! मत्स्य देश के राजा विराट मेरे शत्रु हैं। कीचक ने भी मुझे बहुत तंग किया था। इस अवसर का लाभ उठाकर मैं उससे अपना पुराना बैर भी चुका लेना चाहता हूँ।”
कर्ण ने सुशर्मा की बात का अनुमोदन किया। फिर सबकी राय से यह निश्चय किया गया कि विराट के राज्य पर राजा सुशर्मा दक्षिण की ओर से हमला करे और जब विराट अपनी सेना लेकर उसका मुक़ाबला करने जाए, तब ठीक इसी मौके पर उत्तर की ओर से दुर्योधन अपनी सेना लेकर अचानक विराट नगर पर छापा मार दे। इस योजना के अनुसार राजा सुशर्मा ने दक्षिण की ओर से मत्स्य देश पर आक्रमण कर दिया।
मत्स्य देश के दक्षिणी हिस्से पर त्रिगर्तराज की सेना छा गई और गायों के झुंड-के-झुंड सुशर्मा की सेना के कब्ज़े में आ गए। कंक (युधिष्ठिर) ने विराट को सांत्वना देते हुए कहा—“राजन् चिंता न करें। मैं भी अस्त्र विद्या सीखा हुआ हूँ। मैंने सोचा है कि आपके रसोइये वल्लभ, अश्वपाल ग्रथिक और ततिपाल भी बड़े कुशल योद्धा हैं मैं कवच पहनकर रथारूढ़ होकर युद्धक्षेत्र में जाऊँगा। आप भी उनको आज्ञा दें कि रथारूढ़ होकर मेरे साथ चलें। सबके लिए रथ और शस्त्रास्त्र की आज्ञा दीजिए।”
यह सुनकर विराट बड़े प्रसन्न हो गए। उनकी आज्ञानुसार चारों वीरों के लिए रथ तैयार होकर आ खड़े हुए। अर्जुन को छोड़कर बाक़ी चारों पांडव उन पर चढ़कर विराट और उनकी सेना समेत सुशर्मा से लड़ने चले गए। राजा सुशर्मा और विराट की सेनाओं में घोर युद्ध हुआ। जब राजा विराट बंदी बना लिए गए तो उनकी सारी सेना तितर-बितर हो गई। सैनिक भागने लगे। यह हाल देखकर युधिष्टिर भीमसेन से बोले” भीम! विराट को अभी छुड़ाकर लाना होगा और सुशर्मा का दर्प चूर करना होगा। यदि तुम सदा की भाँति सिंह की सी गर्जना करने लग जाओगे, तो शत्रु तुम्हें तुरंत पहचान लेंगे। इसलिए सामान्य लोगों की भाँति रथ पर बैठकर और धनुष बाण के सहारे लड़ना ठीक होगा।”
आज्ञा मानकर भीमसेन रथ पर से ही सुशर्मा की सेना पर बाणों की बौछार करने लगा। थोड़ी ही देर की लड़ाई के बाद भीम ने विराट को छुड़ा लिया और सुशर्मा को क़ैद कर लिया। सुशर्मा की पराजय की ख़बर जब विराट नगर पहुँची, तो नगरवालों ने नगर को ख़ूब सजाकर आनंद मनाया और विजयी राजा विराट के स्वागत के लिए शहर के बाहर चल पड़े। इधर नगर के लोग विजय की ख़ुशियाँ मना रहे थे और राजा की बाट जोह रहे थे, तो उधर उत्तर की ओर से दुर्योधन ने तबाही मचा दी।
राजकुमार उत्तर तो बिल्कुल डर गया था और काँप रहा था। उसने बृहन्नला से कहा—“बृहन्नला मुझे बचाओ इस संकट से मैं तुम्हारा बड़ा उपकार मानूँगा।”
इस प्रकार राजकुमार उत्तर को भयभीत और घबराया हुआ जानकर बृहन्नला ने उसे समझाते हुए और उसका हौसला बढ़ाते हुए कहा—“राजकुमार घबराओ नहीं तुम तो सिर्फ़ घोड़ों की रास सँभाल लो।” इतना कहकर अर्जुन ने उत्तर को सारथी के स्थान पर बैठाकर रास उसके हाथ में पकड़ा दी। राजकुमार ने रास पकड़ ली। आचार्य द्रोण यह सब दूर से देख रहे थे। उनको विश्वास हो रहा था कि यह अर्जुन ही है। उन्होंने यह बात इशारे से भीष्म को जता दी। यह चर्चा सुनकर दुर्योधन कर्ण से बोला—“हमें इस बात से क्या मतलब कि यह औरत के भेष में कौन है! मान लें कि यह अर्जुन ही है। फिर भी हमारा तो उससे काम ही बनता है। शर्त के अनुसार उन्हें और बारह बरस का वनवास भुगतना पड़ेगा।”
अर्जुन ने कौरव-सेना के सामने रथ ला खड़ा किया। उसने गांडीव सँभाल लिया और उस पर डोरी चढ़ाकर तीन बार ज़ोर से टंकार को कौरव सेना टंकार ध्वनि से सचेत होने भी नहीं पाई थी कि अर्जुन ने खड़े होकर शंख की ध्वनि की, जिससे कौरव सेना थर्रा उठी। उसमें खलबली मच गई कि पांडव आ गए।
sab apna apna bhesh badalkar raja virat ke yahan chakari karne ge, to virat ne unhen apna naukar banakar rakhna uchit na samjha. har ek ke bare mein unka yahi vichar tha ki ye to raaj karne yogya pratit hote hain. man mein shanka to hui, par panDav ke bahut agrah karne aur vishvas dilane par raja ne unhen apni seva mein le liya. panDav apni apni pasand ke kamon par niyukt kar liye ge. yudhishthir ‘kank’ ke naam se virat ke darbari ban ge aur raja ke saath chaupaD khelkar din bitane lage. bhimasen ‘vallabh’ ke naam se rasoiyon ka mukhiya bankar rahne laga. wo kabhi kabhi mashhur pahalvanon se kushti laDkar ya hinstr jantuon ko vash mein karke raja ka dil bahlaya karta tha. arjun stri ke vesh mein ‘brihannla’ ke naam se ranvas ki striyon, khaskar virat ki kanya uttara aur uski saheliyon evan daas dasiyon ko naach aur gana bajana sikhlane laga. unki bimariyon ka ilaaj karne aur unki dekhbhal karne mein apni chaturta ka parichay dete hue raja ko khush karta raha. sahdev ‘tantipal’ ke roop mein gaay bailon ki dekhbhal karta raha. panchal raja ki putri draupadi, jiski seva tahal ke liye kitni hi dasiyan rahti theen, ab apne patiyon ki prtigya puri karne hetu dusri rani ki agyakarini dasi ban gai. virat ki patni sudeshna ki seva sushrusha karti hui ranvas mein ‘sairandhri’ ke naam se kaam karne lage.
rani sudeshna ka bhai kichak baDa hi balishth aur pratapi veer tha. matsya desh ki sena ka vahi nayak bana hua tha aur apne kul ke logon ko saath kichak ne buDhe viratraj ki shakti aur satta mein khoob vriddhi kar di thi. kichak ki dhaak logon par jami hui thi. log kaha karte the ki matsya desh ka raja to kichak hai, virat nahin. yahan tak ki svayan virat bhi kichak se Dara karte the aur uska kaha mante the. jab se panDvon ke barah baras ke vanvas ki avadhi puri hui thi, tabhi se duryodhan ke guptachron ne panDvon ki khoj karni shuru kar di thi khoj inhin dinon hastinapur mein kichak ke mare jane ki khabar pate hi duryodhan ka matha thanka ki ho na ho kichak ka vadh bheem ne hi kiya hoga. ye duryodhan ka anuman tha. usne apna ye vichar rajasbha mein prakat karte hue kaha—“mera khayal hai ki panDav virat ke nagar mein hi chhipe hue hain. mujhe to yahi theek lagta hai ki panDav vahan honge, to nishchay hi virat ki taraf se hamse laDne ayenge. yadi hum agyatvas ki avadhi puri hone se pahle hi unka pata laga lenge, to shart ke anusar unhen barah baras ke liye phir se vanvas karna hoga. yadi panDav virat ke yahan na bhi hue, to bhi hamara kuch nahin bigDega. hamare to donon hathon mein laDDu hain. ”
duryodhan ki ye baat sunkar trigart desh ka raja susharma utha aur bola—“rajan! matsya desh ke raja virat mere shatru hain. kichak ne bhi mujhe bahut tang kiya tha. is avsar ka laabh uthakar main usse apna purana bair bhi chuka lena chahta hoon. ”
karn ne susharma ki batka anumodan kiya. phir sabki raay se ye nishchay kiya gaya ki virat ke rajya par raja susharma dakshin ki or se hamla kare aur jab virat apni sena lekar uska muqabala karne jaye, tab theek isi mauke par uttar ki or se duryodhan apni sena lekar achanak virat nagar par chhapa maar de. is yojna ke anusar raja susharma ne dakshin ki or se matsya desh par akrman kar diya.
matsya desh ke dakshini hisse par trigartraj ki sena chha gai aur gayon ke jhunD ke jhunD susharma ki sena ke kabze mein aa ge. kank (yudhishthir) ne virat ko santvna dete hue kaha—“rajan chinta na karen. main bhi astra vidya sikha hua hoon. mainne socha hai ki aapke rasoie vallabh, ashvpal grthik aur tatipal bhi baDe kushal yoddha hain main kavach pahankar ratharuDh hokar yuddhakshetr mein jaunga. aap bhi unko aagya den ki ratharuDh hokar mere saath chalen. sabke liye rath aur shastrastr ki aagya dijiye. ”
ye sunkar virat baDe prasann ho ge. unki agyanusar charon viron ke liye rath taiyar hokar aa khaDe hue. arjun ko chhoDkar baqi charon panDav un par chaDhkar virat aur unki sena samet susharma se laDne chale ge. raja susharma aur virat ki senaon mein ghor yuddh hua. jab raja virat bandi bana liye ge to unki sari sena titar bitar ho gai. sainik bhagne lage. ye haal dekhkar yudhishtir bhimasen se bole” bheem! virat ko abhi chhuDakar lana hoga aur susharma ka darp choor karna hoga. yadi tum sada ki bhanti sinh ki si garjana karne lag jaoge, to shatru tumhein turant pahchan lenge. isliye samanya logon ki bhanti rath par baithkar aur dhanush baan ke sahare laDna theek hoga. ”
aagya mankar bhimasen rath par se hi susharma ki sena par banon ki bauchhar karne laga. thoDi hi der ki laDai ke baad bheem ne virat ko chhuDa liya aur susharma ko qaid kar liya. susharma ki parajay ki khabar jab virat nagar pahunchi, to nagarvalon ne nagar ko khoob sajakar
anand manaya aur vijyi raja virat ke svagat ke liye shahr ke bahar chal paDe. idhar nagar ke log vijay ki khushiyan mana rahe the aur raja ki baat joh rahe the, to udhar uttar ki or se duryodhan ne tabahi macha di.
rajakumar uttar to bilkul Dar gaya tha aur kaanp raha tha. usne brihannla se kaha—“brihannla mujhe bachao is sankat se main tumhara baDa upkaar manunga. ”
is prakar rajakumar uttar ko bhaybhit aur ghabraya hua jankar brihannla ne use samjhate hue aur uska hausla baDhate hue kaha—“rajakumar ghabrao nahin tum to sirf ghoDon ki raas sanbhal lo. ” itna kahkar arjun ne uttar ko sarthi ke sthaan par baithakar raas uske haath mein pakDa di. rajakumar ne raas pakaD li. acharya dron ye sab door se dekh rahe the. unko vishvas ho raha tha ki ye arjun hi hai. unhonne ye baat ishare se bheeshm ko jata di. ye charcha sunkar duryodhan karn se bola—“hamen is baat se kya matlab ki ye aurat ke bhesh mein kaun hai! maan len ki ye arjun hi hai. phir bhi hamara to usse kaam hi banta hai. shat ke anusar unhen aur barah baras ka vanvas bhugatna paDega. ”
arjun ne kaurav sena ke samne rath la khaDa kiya. usne ganDiv sanbhal liya aur us par Dori chaDhakar teen baar zor se tankar ko kaurav sena tankar dhvani se sachet hone bhi nahin pai thi ki arjun ne khaDe hokar shankh ki dhvani ki, jisse kaurav sena tharra uthi. usmen khalbali mach gai ki panDav aa ge.
sab apna apna bhesh badalkar raja virat ke yahan chakari karne ge, to virat ne unhen apna naukar banakar rakhna uchit na samjha. har ek ke bare mein unka yahi vichar tha ki ye to raaj karne yogya pratit hote hain. man mein shanka to hui, par panDav ke bahut agrah karne aur vishvas dilane par raja ne unhen apni seva mein le liya. panDav apni apni pasand ke kamon par niyukt kar liye ge. yudhishthir ‘kank’ ke naam se virat ke darbari ban ge aur raja ke saath chaupaD khelkar din bitane lage. bhimasen ‘vallabh’ ke naam se rasoiyon ka mukhiya bankar rahne laga. wo kabhi kabhi mashhur pahalvanon se kushti laDkar ya hinstr jantuon ko vash mein karke raja ka dil bahlaya karta tha. arjun stri ke vesh mein ‘brihannla’ ke naam se ranvas ki striyon, khaskar virat ki kanya uttara aur uski saheliyon evan daas dasiyon ko naach aur gana bajana sikhlane laga. unki bimariyon ka ilaaj karne aur unki dekhbhal karne mein apni chaturta ka parichay dete hue raja ko khush karta raha. sahdev ‘tantipal’ ke roop mein gaay bailon ki dekhbhal karta raha. panchal raja ki putri draupadi, jiski seva tahal ke liye kitni hi dasiyan rahti theen, ab apne patiyon ki prtigya puri karne hetu dusri rani ki agyakarini dasi ban gai. virat ki patni sudeshna ki seva sushrusha karti hui ranvas mein ‘sairandhri’ ke naam se kaam karne lage.
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हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।
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