प्रसतुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।
तेरहवें दिन भी संशप्तकों (त्रिगर्तों) ने अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारा। अर्जुन भी चुनौती स्वीकार करके उनके साथ लड़ता हुआ दक्षिण दिशा की ओर चला। नियत स्थान पर पहुँचने पर अर्जुन और संशप्तकों के बीच घोर संग्राम छिड़ गया। अर्जुन के दक्षिण की ओर चले जाने के बाद द्रोणाचार्य ने चक्रव्यूह की रचना की और युधिष्ठिर पर धावा बोल दिया। युधिष्ठिर की ओर से भीम, सात्यकि, चेकितान, धृष्टद्युम्न, कुंतिभोज, उत्तमौजा, विराटराज, वीर कैकेय आदि कितने ही सुविख्यात महारथियों द्रोणाचार्य के आक्रमण की बाढ़ को रोकने की जी-तोड़ कोशिश की। फिर भी द्रोण का वेग उनके रोके नहीं रुका। यह देखकर सभी महारथी चिंता में पड़ गए। सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु अभी बालक ही था। फिर भी अपनी रणकुशलता और शूरता के लिए वह इतना अधिक प्रसिद्ध हो चुका था कि लोग उसको कृष्ण एवं अर्जुन की समता करने वाला समझते थे।
युधिष्ठिर ने इस वीर बालक को बुलाकर कहा—“बेटा! द्रोण के रचे हुए चक्रव्यूह को तोड़ना हमारे और किसी वीर से हो नहीं सकता। अकेले तुम्हीं ऐसे हो, जिसके लिए द्रोण के बनाए इस व्यूह को तोड़ना संभव है। तुम द्रोण की सेना पर आक्रमण करने को तैयार हो?”
यह सुनकर अभिमन्यु बोला—“महाराज, इस चक्रव्यूह में प्रवेश करना तो मुझे आता है, पर प्रवेश करने के बाद कहीं कोई संकट आ गया तो व्यूह से बाहर निकलना मुझे याद नहीं है।” युधिष्ठिर ने कहा—“बेटा! व्यूह को तोड़कर एक बार तुम भीतर प्रवेश कर लो; फिर तो जिधर से तुम आगे बढ़ोगे, उधर से ही हम तुम्हारे पीछे-पीछे चले आएँगे और तुम्हारी मदद को तैयार रहेंगे।”
युधिष्ठिर की बातों का समर्थन करते हुए भीमसेन ने कहा—“तुम्हारे ठीक पीछे-पीछे मैं चलूँगा। धृष्टद्युम्न, सात्यकि आदि वीर भी अपनी-अपनी सेनाओं के साथ तुम्हारा अनुकरण करेंगे। एक बार तुमने व्यूह को तोड़ दिया, तो फिर यह निश्चित समझना की हम सब कौरव-सेना को तहस-नहस कर डालेंगे।”
यह सब सुनकर बालक अभिमन्यु को अपने मामा श्रीकृष्ण और पिता अर्जुन की वीरता का स्मरण हो आया। बड़े उत्साह के साथ वह बोला—“मैं अपनी वीरता और पराक्रम से मामा श्रीकृष्ण और पिता जी को अवश्य प्रसन्न करूँगा।”
“सुमित्र! वह देखो! द्रोणाचार्य के रथ की ध्वजा। उसी ओर रथ चलाओ, जल्दी करो।” अपने सारथी को उत्साहित करते हुए अभिमन्यु ने कहा और सारथी ने भी उसी ओर रथ चलाया। अभिमन्यु की आज्ञा मानकर सारथी ने उधर रथ बढ़ा दिया। कौरव-सेना में हलचल मच गई—“अरे अभिमन्यु आया और उसके पीछे-पीछे पांडव वीर भी चले आ रहे हैं।”
द्रोणाचार्य के देखते-देखते उनका बनाया हुआ व्यूह टूट गया और अभिमन्यु व्यूह के अंदर दाख़िल हो गया। कौरव-वीर एक-एक करके अभिमन्यु का सामना करने आते गए और इस प्रकार कूच करते गए कि जैसे आग में पड़कर पतंगे भस्म हो जाते हैं। जो भी सामने आया, उस बालवीर के बाणों की मार से मारा गया। जैसा कि पहले तय हुआ था, पांडवों की सेना अभिमन्यु के पीछे-पीछे चली और जहाँ से व्यूह तोड़कर अभिमन्यु अंदर घुसा था, वहीं से व्यूह के अंदर प्रवेश करने लगी। यह देखकर सिंधु देश का पराक्रमी राजा जयद्रथ, जो धृतराष्ट्र का दामाद था, अपनी सेना को लेकर पांडव-सेना पर टूट पड़ा। जयद्रथ ने ऐसी कुशलता और बहादुरी से ठीक समय पर व्यूह की टूटी हुई किलेबंदी को फिर से पूरा करके मज़बूत बना दिया कि जिससे पांडव बाहर ही रह गए। अभिमन्यु व्यूह के अंदर अकेला रह गया, परंतु अकेले अभिमन्यु ने व्यूह के अंदर ही कौरवों की उस विशाल सेना को तहस-नहस करना शुरू कर दिया। जो भी उसके सामने आता, ख़त्म हो जाता था। दुर्योधन का पुत्र लक्ष्मण अभी बालक था, परंतु उसमें वीरता की आभा फूट रही थी। उसको भय छू तक नहीं गया था। अभिमन्यु की बाण-वर्षा से व्याकुल होकर जब सभी योद्धा पीछे हटने लगे, तो वीर लक्ष्मण अकेला जाकर अभिमन्यु से भिड़ गया। वह वीर बालक भाले की चोट से तत्काल मृत होकर गिर पड़ा। यह देखकर कौरव सेना आर्त स्वर में हाहाकार कर उठी।
“अभिमन्यु का इसी क्षण वध करो।” दुर्योधन ने चिल्लाकर कहा और द्रोण, अश्वत्थामा, वृहदबल, कृतवर्मा आदि छह महारथियों ने अभिमन्यु को चारों ओर से घेर लिया।
द्रोण ने कर्ण के पास आकर कहा—“इसका कवच भेदा नहीं जा सकता। ठीक से निशाना साधकर इसके रथ के घोड़ों की रास काट डालो और पीछे की ओर से इस पर अस्त्र चलाओ।”
कर्ण ने यही किया। पीछे की ओर से बाण चलाए गए। अभिमन्यु का धनुष कट गया। घोड़े और सारथी मारे गए। वह रथविहीन हो गया। तुरंत ही अभिमन्यु ने टूटे हुए रथ का पहिया हाथ में उठा लिया और उसे घुमाने लगा। इस समय अभिमन्यु भयानक युद्ध कर रहा था। यह देखकर सारी सेना एक साथ उस पर टूट पड़ी। उसके हाथ का पहिया चूर-चूर हो गया। इसी बीच दुःशासन का पुत्र गदा लेकर अभिमन्यु पर झपटा। इस पर अभिमन्यु ने भी पहिया फेंककर गदा उठा ली और दोनों आपस में भिड़ गए। दोनों में घोर युद्ध छिड़ गया। एक-दूसरे पर गदा का भीषण वार करते हुए दोनों ही राजकुमार आहत होकर गिर पड़े। दोनों ही हड़बड़ाकर उठने लगे। दुःशासन का पुत्र ज़रा पहले उठ खड़ा हुआ। अभिमन्यु अभी उठ ही रहा था कि दुःशासन के पुत्र ने उसके सिर पर ज़ोर से गदा-प्रहार किया। यों भी अभिमन्यु अब कइयों से अकेला लड़ते हुए घायल हो चुका था और थककर चूर हो रहा था। गदा की मार पड़ते ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गए।
संशप्तकों (त्रिगर्तों) का संहार करने के बाद युद्ध समाप्त करके अर्जुन और श्री कृष्ण अपने शिविर को लौट रहे थे। अर्जुन श्रीकृष्ण से बोला—“जनार्दन! मेरा मन घबराया हुआ है। मैं भ्रांत-सा हो रहा हूँ? सब भाई कुशल से तो होंगे? आज अभिमन्यु अपने भाइयों के साथ हँसता हुआ मेरा स्वागत करने क्यों नहीं दौड़ा आ रहा है?” ऐसी ही बातें करते हुए दोनों शिविर के अंदर पहुँचे।
किसी के कुछ न कहने पर भी अर्जुन ने परिस्थिति देखकर अपने आप ही सब बातें ताड़ लीं और तब उससे रहा नहीं गया। सब कुछ जान जाने पर वह बुरी तरह से बिलखने लगा।
श्रीकृष्ण की बातें सुनकर अर्जुन कुछ शांत हुआ। उसने अपने इस वीर पुत्र की मृत्यु का सारा हाल जानना चाहा। उसके पूछने पर युधिष्ठिर बोले—“मैंने ही अभिमन्यु से कहा था कि चक्रव्यूह को तोड़कर भीतर प्रवेश करने का हमारे लिए रास्ता बना दो, तो हम सब तुम्हारा अनुकरण करते हुए व्यूह में प्रवेश कर लेंगे। मेरी बात मानकर वीर अभिमन्यु इस अभेद्य व्यूह को तोड़कर अंदर घुस गया। हम भी उसी के पीछे-पीछे चले। हम अंदर घुसने ही वाले थे कि पापी जयद्रथ ने हमें रोक लिया। उसने बड़ी चतुरता से टूटे हुए व्यूह को फिर से ठीक कर दिया। हमारे लाख प्रयत्न करने पर भी जयद्रथ ने हमें प्रवेश करने नहीं दिया। इसके बाद हम तो बाहर रहे और अंदर कई महारथियों ने एक साथ मिलकर उस अकेले बालक को घेर लिया और मार डाला।”
युधिष्ठिर की बात पूरी भी न हो पाई थी कि अर्जुन आर्त स्वर में “हा बेटा!” कहकर मूच्छित होकर गिर पड़ा। चेत आने पर वह उठा और दृढ़तापूर्वक बोला—“जिसके कारण मेरे प्रिय पुत्र की मृत्यु हुई है, उस जयद्रथ का मैं कल सूर्यास्त होने से पहले वध करके रहूँगा। यह मेरी प्रतिज्ञा है।” यह कहकर अर्जुन ने गांडीव पर ज़ोर से टंकार की।
सिंधु देश के सुप्रसिद्ध राजा वृद्ध के पुत्र जयद्रथ को जब अर्जुन की प्रतिज्ञा का हाल मालूम हुआ, तो वह दुर्योधन के पास गया और बोला—“मुझे युद्ध की चाह नहीं है। मैं अपने देश चला जाना चाहता हूँ।” यह सुनकर दुर्योधन ने उसको धीरज बँधाया और बोला—“सैंधव! आप भय न करें। मेरी सारी सेना आपकी रक्षा करने के लिए नियुक्त की जाएगी, आप नि:शंक रहें।” दुर्योधन के इस प्रकार आग्रह करने पर जयद्रथ ने उसकी बात मान ली।
सवेरा हुआ। शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ आचार्य द्रोण ने सेना की व्यवस्था करने में ध्यान दिया। युद्ध के मैदान से बारह मील की दूरी पर जयद्रथ को अपनी सेना एवं रक्षकों के साथ रखा गया। उसकी रक्षा के लिए भूरिश्रवा, कर्ण, अश्वत्थामा, शल्य, वृषसेन आदि महारथी अपनी सेनाओं के साथ सुसज्जित होकर तैयार खड़े थे। अर्जुन पहले भोजों की सेना पर टूट पड़ा। कृतवर्मा और सुदक्षिण पर एक ही साथ हमला करके व उनको परास्त करके वह श्रुतायुध पर टूट पड़ा। ज़ोरों की लड़ाई छिड़ गई। श्रुतायुध के घोड़े मारे गए। इस पर उसने गदा उठाकर श्रीकृष्ण पर प्रहार किया। परंतु निःशस्त्र और युद्ध में शरीक न होने वाले श्रीकृष्ण पर फेंककर मारी गई गदा श्रुतायुध को ही जा लगी और श्रुतायुध मृत होकर गिर पड़ा। इस पर कांभोजराज सुदक्षिण ने अर्जुन पर ज़ोरों का हमला कर दिया। किंतु अर्जुन ने उस पर बाणों की ऐसी वर्षा की कि उसका रथ चूर-चूर हो गया। उसके कवच के टुकडे-टुकड़े हो गए और छाती पर बाण लगने से कांभोजराज हाथ फैलाता हुआ धड़ाम से गिर पड़ा।
इस प्रकार अपना गांडीव हाथ में लिए हुए असंख्य वीरों का काम तमाम करता हुआ अर्जुन आगे बढ़ता गया और कौरव-सेना के समुद्र को चीरता हुआ अंत में उस जगह पर जा पहुँचा, जहाँ जयद्रथ अपनी सेना से घिरा हुआ खड़ा था। अर्जुन का रथ जयद्रथ की ओर जाते हुए देखकर दुर्योधन चिंतित और दुखी हुआ।
जयद्रथ की रक्षा के लिए नियुक्त वीरों ने जब यह सुना, तो उनके दिल एकबारगी दहल उठे और भूरिश्रवा, कर्ण, वृषसेन, शल्य, अश्वत्थामा, जयद्रथ आदि आठों महारथी अर्जुन का मुक़ाबला करने को तत्पर हो उठे।
terahven din bhi sanshaptkon (trigarton) ne arjun ko yuddh ke liye lalkara. arjun bhi chunauti svikar karke unke saath laDta hua dakshin disha ki or chala. niyat sthaan par pahunchne par arjun aur sanshaptkon ke beech ghor sangram chhiD gaya. arjun ke dakshin ki or chale jane ke baad dronacharya ne chakravyuh ki rachna ki aur yudhishthir par dhava bol diya. yudhishthir ki or se bheem, satyaki, chekitan, dhrishtadyumn, kuntibhoj, uttamauja, viratraj, veer kaikey aadi kitne hi suvikhyat maharathiyon dronacharya ke akrman ki baaDh ko rokne ki ji toD koshish ki. phir bhi dron ka veg unke roke nahin ruka. ye dekhkar sabhi maharathi chinta mein paD ge. subhadra ka putr abhimanyu abhi balak hi tha. phir bhi apni ranakushalta aur shurata ke liye wo itna adhik prasiddh ho chuka tha ki log usko krishn evan arjun ki samta karnevala samajhte the.
yudhishthir ne is veer balak ko bulakar kaha—“beta! dron ke rache hue chakravyuh ko toDna hamare aur kisi veer se ho nahin sakta. akele tumhin aise ho, jiske liye dron ke banaye is vyooh ko toDna sambhav hai. tum dron ki sena par akrman karne ko taiyar ho?”
ye sunkar abhimanyu bola—“maharaj, is chakravyuh mein pravesh karna to mujhe aata hai, par pravesh karne ke baad kahin koi sankat aa gaya to vyooh se bahar nikalna mujhe yaad nahin hai. ” yudhishthir ne kaha—“beta! vyooh ko toDkar ek baar tum bhitar pravesh kar lo; phir to jidhar se tum aage baDhoge, udhar se hi hum tumhare pichhe pichhe chale ayenge aur tumhari madad ko taiyar rahenge. ”
yudhishthir ki baton ka samarthan karte hue bhimasen ne kaha—“tumhare theek pichhe pichhe main chalunga. dhrishtadyumn, satyaki aadi veer bhi apni apni senaon ke saath tumhara anukran karenge. ek baar tumne vyooh ko toD diya, to phir ye nishchit samajhna ki hum sab kaurav sena ko tahas nahas kar Dalenge. ”
ye sab sunkar balak abhimanyu ko apne mama shrikrishn aur pita arjun ki virata ka smran ho aaya. baDe utsaah ke saath wo bola—“main apni virata aur parakram se mama shrikrishn aur pita ji ko avashya prasann karunga. ”
“sumitr! wo dekho! dronacharya ke rath ki dhvaja. usi or rath chalao, jaldi karo. ” apne sarthi ko utsahit karte hue abhimanyu ne kaha aur sarthi ne bhi usi or rath chalaya. abhimanyu ki aagya mankar sarthi ne udhar rath baDha diya. kaurav sena mein halchal mach gai—“are abhimanyu aaya aur uske pichhe pichhe panDav veer bhi chale aa rahe hain. ”
dronacharya ke dekhte dekhte unka banaya hua vyooh toot gaya aur abhimanyu vyooh ke andar dakhil ho gaya. kaurav veer ek ek karke abhimanyu ka samna karne aate ge aur is prakar kooch karte ge ki jaise aag mein paDkar patange bhasm ho jate hain. jo bhi samne aaya, us balvir ke banon ki maar se mara gaya. jaisa ki pahle tay hua tha, panDvon ki sena abhimanyu ke pichhe pichhe chali aur jahan se vyooh toDkar abhimanyu andar ghusa tha, vahin se vyooh ke andar pravesh karne lagi. ye dekhkar sindhu desh ka parakrami raja jayadrath, jo dhritarashtr ka damad tha, apni sena ko lekar panDav sena par toot paDa. jayadrath ne aisi kushalta aur bahaduri se theek samay par vyooh ki tuti hui kilebandi ko phir se pura karke mazbut bana diya ki jisse panDav bahar hi rah ge. abhimanyu vyooh ke andar akela rah gaya, parantu akele abhimanyu ne vyooh ke andar hi kaurvon ki us vishal sena ko tahas nahas karna shuru kar diya. jo bhi uske samne aata, khatm ho jata tha. duryodhan ka putr lakshman abhi balak tha, parantu usmen virata ki aabha phoot rahi thi. usko bhay chhu tak nahin gaya tha. abhimanyu ki baan varsha se vyakul hokar jab sabhi yoddha pichhe hatne lage, to veer lakshman akela jakar abhimanyu se bhiD gaya. wo veer balak bhale ki chot se tatkal mrit hokar gir paDa. ye dekhkar kaurav sena aart svar mein hahakar kar uthi.
“abhimanyu ka isi kshan vadh karo. ” duryodhan ne chillakar kaha aur dron, ashvatthama, vrihadbal, kritvarma aadi chhah maharathiyon ne abhimanyu ko charon or se gher liya.
dron ne karn ke paas aakar kaha—“iska kavach bheda nahin ja sakta. theek se nishana sadhkar iske rath ke ghoDon ki raas kaat Dalo aur pichhe ki or se is par astra chalao. ”
karn ne yahi kiya. pichhe ki or se baan chalaye ge. abhimanyu ka dhanush kat gaya. ghoDe aur sarthi mare ge. wo rathavihin ho gaya. turant hi abhimanyu ne tute hue rath ka pahiya haath mein utha liya aur use ghumane laga. is samay abhimanyu bhayanak yuddh kar raha tha. ye dekhkar sari sena ek saath us par toot paDi. uske haath ka pahiya choor choor ho gaya. isi beech duःshasan ka putr gada lekar abhimanyu par jhapta. is par abhimanyu ne bhi pahiya phenkkar gada utha li aur donon aapas mein bhiD ge. donon mein ghor yuddh chhiD gaya. ek dusre par gada ka bhishan vaar karte hue donon hi rajakumar aahat hokar gir paDe. donon hi haDabDakar uthne lage. duःshasan ka putr zara pahle uth khaDa hua. abhimanyu abhi uth hi raha tha ki duःshasan ke putr ne uske sir par zor se gada prahar kiya. yon bhi abhimanyu ab kaiyon se akela laDte hue ghayal ho chuka tha aur thakkar choor ho raha tha. gada ki maar paDte hi uske praan pakheru uD ge.
sanshaptkon (trigarton) ka sanhar karne ke baad yuddh samapt karke arjun aur shri krishn apne shivir ko laut rahe the. arjun shrikrishn se bola—“janardan! mera man ghabraya hua hai. main bhraant sa ho raha hoon? sab bhai kushal se to honge? aaj abhimanyu apne bhaiyon ke saath hansta hua mera svagat karne kyon nahin dauDa aa raha hai?” aisi hi baten karte hue donon shivir ke andar pahunche.
kisi ke kuch na kahne par bhi arjun ne paristhiti dekhkar apne aap hi sab baten taaD leen aur tab usse raha nahin gaya. sab kuch jaan jane par wo buri tarah se bilakhne laga.
shrikrishn ki baten sunkar arjun kuch shaant hua. usne apne is veer putr ki mrityu ka sara haal janna chaha. uske puchhne par yudhishthir bole—“mainne hi abhimanyu se kaha tha ki chakravyuh ko toDkar bhitar pravesh karne ka hamare liye rasta bana do, to hum sab tumhara anukran karte hue vyooh mein pravesh kar lenge. meri baat mankar veer abhimanyu is abhedya vyooh ko toDkar andar ghus gaya. hum bhi usi ke pichhe pichhe chale. hum andar ghusne hi vale the ki papi jayadrath ne hamein rok liya. usne baDi chaturta se tute hue vyooh ko phir se theek kar diya. hamare laakh prayatn karne par bhi jayadrath ne hamein pravesh karne nahin diya. iske baad hum to bahar rahe aur andar kai maharathiyon ne ek saath milkar us akele balak ko gher liya aur maar Dala. ”
yudhishthir ki baat puri bhi na ho pai thi ki arjun aart svar mein “ha beta!” kahkar muchchhit hokar gir paDa. chet aane par wo utha aur driDhtapurvak bola—“jiske karan mere priy putr ki mrityu hui hai, us jayadrath ka main kal suryast hone se pahle vadh karke rahunga. ye meri prtigya hai. ” ye kahkar arjun ne ganDiv par zor se tankar ki.
sindhu desh ke suprasiddh raja vriddh ke putr jayadrath ko jab arjun ki prtigya ka haal malum hua, to wo duryodhan ke paas gaya aur bola—“mujhe yuddh ki chaah nahin hai. main apne desh chala jana chahta hoon. ” ye sunkar duryodhan ne usko dhiraj bandhaya aur bola—“saindhav! aap bhay na karen. meri sari sena apaki raksha karne ke liye niyukt ki jayegi, aap nihshank rahen. ” duryodhan ke is prakar agrah karne par jayadrath ne uski baat maan li.
savera hua. shastrdhariyon mein shreshth acharya dron ne sena ki vyavastha karne mein dhyaan diya. yuddh ke maidan se barah meel ki duri par jayadrath ko apni sena evan rakshkon ke saath rakha gaya. uski raksha ke liye bhurishrva, karn, ashvatthama, shalya, vrishsen aadi maharathi apni senaon ke saath susajjit hokar taiyar khaDe the. arjun pahle bhojon ki sena par toot paDa. kritvarma aur sudakshin par ek hi saath hamla karke va unko parast karke wo shrutayudh par toot paDa. zoron ki laDai chhiD gai. shrutayudh ke ghoDe mare ge. is par usne gada uthakar shrikrishn par prahar kiya. parantu niःshastr aur yuddh mein sharik na honevale shrikrishn par phenkkar mari gai gada shrutayudh ko hi ja lagi aur shrutayudh mrit hokar gir paDa. is par kambhojraj sudakshin ne arjun par zoron ka hamla kar diya. kintu arjun ne us par banon ki aisi varsha ki ki uska rath choor choor ho gaya. uske kavach ke tukDe tukDe ho ge aur chhati par baan lagne se kambhojraj haath phailata hua dhaDam se gir paDa.
is prakar apna ganDiv haath mein liye hue asankhya viron ka kaam tamam karta hua arjun aage baDhta gaya aur kaurav sena ke samudr ko chirta hua ant mein us jagah par ja pahuncha, jahan jayadrath apni sena se ghira hua khaDa tha. arjun ka rath jayadrath ki or jate hue dekhkar duryodhan chintit aur dukhi hua.
jayadrath ki raksha ke liye niyukt viron ne jab ye suna, to unke dil ekbargi dahal uthe aur bhurishrva, karn, vrishsen, shalya, ashvatthama, jayadrath aadi athon maharathi arjun ka muqabala karne ko tatpar ho uthe.
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“sumitr! wo dekho! dronacharya ke rath ki dhvaja. usi or rath chalao, jaldi karo. ” apne sarthi ko utsahit karte hue abhimanyu ne kaha aur sarthi ne bhi usi or rath chalaya. abhimanyu ki aagya mankar sarthi ne udhar rath baDha diya. kaurav sena mein halchal mach gai—“are abhimanyu aaya aur uske pichhe pichhe panDav veer bhi chale aa rahe hain. ”
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dron ne karn ke paas aakar kaha—“iska kavach bheda nahin ja sakta. theek se nishana sadhkar iske rath ke ghoDon ki raas kaat Dalo aur pichhe ki or se is par astra chalao. ”
karn ne yahi kiya. pichhe ki or se baan chalaye ge. abhimanyu ka dhanush kat gaya. ghoDe aur sarthi mare ge. wo rathavihin ho gaya. turant hi abhimanyu ne tute hue rath ka pahiya haath mein utha liya aur use ghumane laga. is samay abhimanyu bhayanak yuddh kar raha tha. ye dekhkar sari sena ek saath us par toot paDi. uske haath ka pahiya choor choor ho gaya. isi beech duःshasan ka putr gada lekar abhimanyu par jhapta. is par abhimanyu ne bhi pahiya phenkkar gada utha li aur donon aapas mein bhiD ge. donon mein ghor yuddh chhiD gaya. ek dusre par gada ka bhishan vaar karte hue donon hi rajakumar aahat hokar gir paDe. donon hi haDabDakar uthne lage. duःshasan ka putr zara pahle uth khaDa hua. abhimanyu abhi uth hi raha tha ki duःshasan ke putr ne uske sir par zor se gada prahar kiya. yon bhi abhimanyu ab kaiyon se akela laDte hue ghayal ho chuka tha aur thakkar choor ho raha tha. gada ki maar paDte hi uske praan pakheru uD ge.
sanshaptkon (trigarton) ka sanhar karne ke baad yuddh samapt karke arjun aur shri krishn apne shivir ko laut rahe the. arjun shrikrishn se bola—“janardan! mera man ghabraya hua hai. main bhraant sa ho raha hoon? sab bhai kushal se to honge? aaj abhimanyu apne bhaiyon ke saath hansta hua mera svagat karne kyon nahin dauDa aa raha hai?” aisi hi baten karte hue donon shivir ke andar pahunche.
kisi ke kuch na kahne par bhi arjun ne paristhiti dekhkar apne aap hi sab baten taaD leen aur tab usse raha nahin gaya. sab kuch jaan jane par wo buri tarah se bilakhne laga.
shrikrishn ki baten sunkar arjun kuch shaant hua. usne apne is veer putr ki mrityu ka sara haal janna chaha. uske puchhne par yudhishthir bole—“mainne hi abhimanyu se kaha tha ki chakravyuh ko toDkar bhitar pravesh karne ka hamare liye rasta bana do, to hum sab tumhara anukran karte hue vyooh mein pravesh kar lenge. meri baat mankar veer abhimanyu is abhedya vyooh ko toDkar andar ghus gaya. hum bhi usi ke pichhe pichhe chale. hum andar ghusne hi vale the ki papi jayadrath ne hamein rok liya. usne baDi chaturta se tute hue vyooh ko phir se theek kar diya. hamare laakh prayatn karne par bhi jayadrath ne hamein pravesh karne nahin diya. iske baad hum to bahar rahe aur andar kai maharathiyon ne ek saath milkar us akele balak ko gher liya aur maar Dala. ”
yudhishthir ki baat puri bhi na ho pai thi ki arjun aart svar mein “ha beta!” kahkar muchchhit hokar gir paDa. chet aane par wo utha aur driDhtapurvak bola—“jiske karan mere priy putr ki mrityu hui hai, us jayadrath ka main kal suryast hone se pahle vadh karke rahunga. ye meri prtigya hai. ” ye kahkar arjun ne ganDiv par zor se tankar ki.
sindhu desh ke suprasiddh raja vriddh ke putr jayadrath ko jab arjun ki prtigya ka haal malum hua, to wo duryodhan ke paas gaya aur bola—“mujhe yuddh ki chaah nahin hai. main apne desh chala jana chahta hoon. ” ye sunkar duryodhan ne usko dhiraj bandhaya aur bola—“saindhav! aap bhay na karen. meri sari sena apaki raksha karne ke liye niyukt ki jayegi, aap nihshank rahen. ” duryodhan ke is prakar agrah karne par jayadrath ne uski baat maan li.
savera hua. shastrdhariyon mein shreshth acharya dron ne sena ki vyavastha karne mein dhyaan diya. yuddh ke maidan se barah meel ki duri par jayadrath ko apni sena evan rakshkon ke saath rakha gaya. uski raksha ke liye bhurishrva, karn, ashvatthama, shalya, vrishsen aadi maharathi apni senaon ke saath susajjit hokar taiyar khaDe the. arjun pahle bhojon ki sena par toot paDa. kritvarma aur sudakshin par ek hi saath hamla karke va unko parast karke wo shrutayudh par toot paDa. zoron ki laDai chhiD gai. shrutayudh ke ghoDe mare ge. is par usne gada uthakar shrikrishn par prahar kiya. parantu niःshastr aur yuddh mein sharik na honevale shrikrishn par phenkkar mari gai gada shrutayudh ko hi ja lagi aur shrutayudh mrit hokar gir paDa. is par kambhojraj sudakshin ne arjun par zoron ka hamla kar diya. kintu arjun ne us par banon ki aisi varsha ki ki uska rath choor choor ho gaya. uske kavach ke tukDe tukDe ho ge aur chhati par baan lagne se kambhojraj haath phailata hua dhaDam se gir paDa.
is prakar apna ganDiv haath mein liye hue asankhya viron ka kaam tamam karta hua arjun aage baDhta gaya aur kaurav sena ke samudr ko chirta hua ant mein us jagah par ja pahuncha, jahan jayadrath apni sena se ghira hua khaDa tha. arjun ka rath jayadrath ki or jate hue dekhkar duryodhan chintit aur dukhi hua.
jayadrath ki raksha ke liye niyukt viron ne jab ye suna, to unke dil ekbargi dahal uthe aur bhurishrva, karn, vrishsen, shalya, ashvatthama, jayadrath aadi athon maharathi arjun ka muqabala karne ko tatpar ho uthe.
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।
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