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तित्तिर जातक

tittir jatak

अज्ञात

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    प्राचीन काल में हिमालय पर्वत पर न्यग्रोध का एक बहुत बड़ा वृक्ष था, जिसके पास एक तीतर, एक बंदर और एक हाथी रहता था। उन तीनों में बहुत मित्रता थी; पर उनमें परस्पर छोटे बड़े का कोई भाव नहीं था, इसलिए यह भी निश्चित नहीं था कि किसके प्रति कौन कितनी मर्यादा प्रकट किया करे और किस का कौन कितना आदर किया करे। पर उन लोगों ने समझ लिया कि इस प्रकार मर्यादा रहित होकर विचरण करना ठीक नहीं है। अतः उन लोगों ने निश्चय किया कि पहले हम लोगों को यह स्थिर कर लेना चाहिए कि हम लोगों में कौन बड़ा है और कौन छोटा; और तब बड़े के प्रति छोटों को आदर सम्मान प्रकट करना चाहिए।

    वे लोग यह निश्चय करना चाहते थे कि हम लोगों में अवस्था में कौन बड़ा है। सोचते-सोचते उन्होंने यह जानने का एक उपाय ढूँढ़ निकाला। एक दिन वे तीनों उस वट वृक्ष के नीचे बैठे हुए थे। इतने में तीतर और बंदर ने हाथी से पूछा—क्यों भाई, जब तुमने पहले पहल यह वट वृक्ष देखा था, तब यह कितना बड़ा था? हाथी ने कहा—जब मैं बच्चा था, तब यह वट वृक्ष इतना छाटा था कि मैं इसे लाँघकर चला जाया करता था। जब मैं इसे अपने पेट के नीचे रखकर खड़ा होता था, तब इसकी ऊपरवाली शाखा मेरी नाभी से स्पर्श करती थी। फिर तीतर और हाथी ने बंदर से यही प्रश्न किया। उसने उत्तर दिया— मुझे तो स्मरण आता है कि जब मैं बच्चा था, तब मैं ज़मीन पर बैठा-बैठा मुँह बढ़ाकर इसके ऊपर की फुनगियाँ चबाया करता था।

    अंत में चंदर और हाथी ने तीतर से भी यही प्रश्न किया। तीतर ने उत्तर दिया पहले अमुक स्थान पर एक वट वृक्ष था। उसी के फल खाकर मैंने इस स्थान पर मल त्याग किया था। उसी से यह वृक्ष उत्पन्न हुआ है। इस प्रकार इस वृक्ष के उत्पन्न होने से पहले ही मैं इसका हाल जनता हूँ; इसलिए मैं अवस्था में तुम दोनों से बड़ा हूँ।”

    इस पर बंदर और हाथी ने उस चतुर तीतर से कहा—आप अवस्था में हम दोनों से बड़े हैं। बड़ो के प्रति जिस प्रकार आदर सम्मान प्रकट करना उचित है, अब उसी प्रकार का आदर सम्मान हम लोग आपके प्रति प्रकट किया करेंगे। हम लोग आपको अभिवादन किया करेंगे और आपके उपदेश के अनुसार चला करेंगे। आप भी समय-समय पर कृपाकर हम लोगों को उचित उपदेश दिया कीजिएगा।

    तब से तीतर उन दोनों को उपदेश देने लगा और स्वयं भी शील व्रत का पालन करने लगा। इस प्रकार पंचशील से संपन्न होकर वे तीनों उत्तम रूप से जीवन व्यतीत करते हुए देव लोक के निवास के योग्य बन गए।

    [इनमें से तीतर बोधिसत्व ही थे।]

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