प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।
उधर अर्जुन सिंधुराज जयद्रथ के साथ युद्ध कर रहा था और उसका वध करने के मौक़े की तलाश में था। इतने में भूरिश्रवा ने सात्यकि को ऊपर उठाया और ज़मीन पर ज़ोर से दे पटका। कौरव-सेना ज़ोरों से कोलाहल कर उठी—“सात्यकि मारा गया।”
अर्जुन ने देखा कि मैदान में मृत-से पड़े सात्यकि को भूरिश्रवा घसीट रहा है। यह देखकर अर्जुन भारी असमंजस में पड़ गया। उसे कुछ नहीं सूझा कि क्या किया जाए। वह श्रीकृष्ण से बोला—“कृष्ण, भूरिश्रवा मुझसे लड़ नहीं रहा है। दूसरे के साथ लड़ने वाले पर कैसे बाण चलाऊँ?”
अर्जुन इस प्रकार श्रीकृष्ण से बातें कर ही रहा था कि इतने में जयद्रथ द्वारा छोड़े गए बाणों के समूह आकाश में छा गए। इस पर अर्जुन ने बातें करते-करते ही जयद्रथ पर बाणों की बौछार जारी रखी।
ज्योंही अर्जुन ने सात्यकि की ओर मुड़कर देखा तो पाया कि सात्यकि ज़मीन पर पड़ा हुआ था और भूरिश्रवा उसके शरीर को एक पाँव से दबाकर और दाहिने हाथ में तलवार लेकर उस पर वार करने को उद्यत ही था। यह देखकर अर्जुन से रहा न गया। उसने उसी क्षण भूरिश्रवा पर तानकर बाण चलाया। बाण लगते ही भूरिश्रवा का दाहिना हाथ कटकर तलवार समेत दूर ज़मीन पर जा गिरा।
अपना हाथ कट जाने पर जब भूरिश्रवा ने कृष्ण की निंदा की, तो अर्जुन बोला—“वृद्ध भूरिश्रवा ! तुमने मेरे प्रिय मित्र सात्यकि का वध करने की कोशिश की है और वह भी उस समय जबकि वह घायल और अचेत-सा होकर ज़मीन पर निःशस्त्र पड़ा हुआ था। उस अवस्था में तुमने उसे तलवार से मारना चाहा। जिसके हथियार टूट चुके थे, कवच नष्ट हो चुका था और जो इतना थका हुआ था कि जिसके लिए खड़ा रहना भी दूभर था, ऐसे मेरे कोमल बालक अभिमन्यु का वध होने पर तुम सभी लोगों ने विजयोत्सव मनाया था। तुम्हीं बताओ कि ऐसा करना किस धर्म के अनुसार उचित था?”
अर्जुन के इस प्रकार मुँहतोड़ जवाब देने पर भूरिश्रवा युद्ध के मैदान में शरों को फैलाकर और आसन जमाकर बैठ गया। उसने वहीं आमरण अनशन शुरू कर दिया। यह सब देखकर अर्जुन बोला—“वीरो! तुम सब मेरी प्रतिज्ञा जानते हो। मेरे बाणों की पहुँच तक अपने किसी भी मित्र या साथी का शत्रु के हाथों वध न होने देने का प्रण मैंने कर रखा है। इसलिए सात्यकि की रक्षा करना मेरा धर्म था।” अर्जुन की ये बातें सुनकर भूरिश्रवा ने भी शांति से सिर नवाया और ज़मीन पर टेक दिया। इन बातों में कोई दो घड़ी का समय बीत गया था। सब लोगों के मना करते हुए भी सात्यकि ने भूरिश्रवा का सिर धड़ से अलग कर दिया।
सात्यकि के कार्य को सबने निकृष्ट कहकर धिक्कारा लड़ाई के मैदान में जिस ढंग से भूरिश्रवा का वध हुआ था, उसे किसी ने भी उचित नहीं माना।
कौरव-सेना को तितर-बितर करता हुआ अर्जुन जयद्रथ के पास आख़िर पहुँच ही गया, परंतु जयद्रथ भी कोई साधारण वीर नहीं था। वह सुविख्यात योद्धा था। वह डटकर लड़ने लगा। उसे हराना अर्जुन के लिए भी सुगम न था। बड़ी देर तक युद्ध होता रहा। दोनों पक्षों के वीर सूर्य की ओर बार-बार देखने लगे। धीरे-धीरे पश्चिम में लालिमा छाने लगी और सूर्यास्त का समय भी नज़दीक आने लगा, परंतु जयद्रथ और अर्जुन का युद्ध समाप्त होने के कोई लक्षण नज़र नहीं आते थे।
यह देखकर दुर्योधन के मन में आनंद की लहर उठने लगी। उसने सोचा कि अब ज़रा सी देर और है। जयद्रथ तो बच ही गया और अर्जुन की प्रतिज्ञा विफल हुई-सी है। जयद्रथ ने भी पश्चिम की ओर देखते हुए मन में कहा—“चलो, प्राण बचे!”
इसी बीच श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा—“अर्जुन! जयद्रथ सूर्य की तरफ़ देखने में लगा है और मन में समझ रहा है कि सूर्य डूब गया। परंतु अभी तो सूर्य डूबा नहीं है। अपनी प्रतिज्ञा पूरी करने का तुम्हारे लिए यही अवसर है।”
श्रीकृष्ण के ये वचन अर्जुन के कान में पड़े ही थे कि अर्जुन के गांडीव से एक तेज़ बाण छूटा और जयद्रथ के सिर को उड़ा ले गया। श्रीकृष्ण ने समय पर ही एक चेतावनी अर्जुन को दे दी थी कि जयद्रथ के सिर को ज़मीन पर नहीं गिरने देना है। अर्जुन ने ऐसा ही किया। जयद्रथ के पिता राजा वृद्धक्षत्र अपने आश्रम में बैठे संध्या वंदना कर रहे थे कि इतने में जयद्रथ का सिर ध्यानमग्न राजा की गोद में जा गिरा। ध्यान समाप्त होने पर जब वृद्धक्षत्र की आँखें खुलीं और वह उठे, तो जयद्रथ का सिर उनकी गोद से ज़मीन पर गिर पड़ा उसी क्षण बूढ़े वृद्धक्षत्र के सिर के भी सौ टुकड़े हो गए।
जब युधिष्ठिर ने जान लिया कि अर्जुन के हाथों जयद्रथ का वध हो गया है, तो उन सबके आनंद की सीमा न रही। इसके बाद तो युधिष्ठिर दूने उत्साह के साथ सारी पांडव सेना को लेकर आचार्य द्रोण पर टूट पड़े। चौदहवें दिन का युद्ध केवल सूर्यास्त तक ही नहीं हुआ, बल्कि रात को भी होता रहा। घटोत्कच भीमसेन का हिडिंबा से उत्पन्न पुत्र था। कर्ण और घटोत्कच में उस रात बड़ा भयानक युद्ध हुआ। घटोत्कच ने कर्ण को भी इतनी पीड़ा पहुँचाई थी कि वह आपे में न रहा और इंद्र की दी हुई शक्ति का, जिसे उसने अर्जुन का वध करने के उद्देश्य से यत्नपूर्वक सुरक्षित रखा था, घटोत्कच पर प्रयोग कर दिया। इससे अर्जुन का संकट तो टल गया, परंतु भीमसेन का प्रिय एवं वीर पुत्र घटोत्कच मारा गया। पांडवों के दुख की सीमा न रही। इतने पर भी युद्ध बंद नहीं हुआ। द्रोणाचार्य के धनुष से बाणों की तीव्र बौछार से पांडव सेना के असंख्य वीर कट-कटकर गिरते जाते थे।
यह देखकर श्रीकृष्ण अर्जुन से बोले—“अर्जुन! कुछ कुचक्र रचकर ही इनको परास्त करना होगा। आज अगर परास्त न हुए तो ये हमारा सर्वनाश कर देंगे। इसलिए किसी को आचार्य के पास जाकर यह ख़बर पहुँचानी चाहिए कि अश्वत्थामा मारा गया।” युधिष्ठिर ने काफ़ी सोच-विचार के बाद कहा कि यह पाप मैं अपने ही ऊपर लेता हूँ। इस व्यवस्था के अनुसार भीम ने गदा-प्रहार से अश्वत्थामा नाम के एक भारी लड़ाके हाथी को मार डाला। फिर द्रोण की सेना के पास जाकर ज़ोर से चिल्लाने लगा—“मैंने अश्वत्थामा को मारा डाला है।”
उधर युद्ध करते हुए द्रोणाचार्य ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना ही चाहते थे कि उन्होंने सुना कि उनका पुत्र अश्वत्थामा मारा गया। वह विचलित हो गए। साथ ही उन्हें इस बात की सच्चाई पर भी शक हुआ। उन्होंने युधिष्ठिर से पूछा। आचार्य द्रोण को विश्वास था कि युधिष्ठिर झूठ नहीं बोलेंगे।
युधिष्ठिर असत्य बोलते हुए डरे, पर विजय प्राप्त करने की लालसा में किसी तरह जी कड़ा करके जोर से बोले—“हाँ, अश्वत्थामा मारा गया। परंतु यह कहते-कहते अंत में धीमे स्वर में यह भी कह दिया कि—“मनुष्य नहीं, हाथी।” इसके साथ ही भीम तथा अन्य पांडवों ने ज़ोरों का शंखनाद और सिंहनाद किया, जिससे युधिष्ठिर के अंतिम वचन उस शोर में लुप्त हो गए।
युधिष्ठिर के मुँह से यह सुनते ही चारों ओर हाहाकार मच गया और इसी हाहाकार के बीच धृष्टद्युम्न ने ध्यानमग्न आचार्य की गरदन पर खड्ग से ज़ोर का वार किया। आचार्य द्रोण का सिर तत्काल ही धड़ से अलग होकर गिर पड़ा।
udhar arjun sindhuraj jayadrath ke saath yuddh kar raha tha aur uska vadh karne ke mauqe ki talash mein tha. itne mein bhurishrva ne satyaki ko uupar uthaya aur zamin par zor se de patka. kaurav sena zoron se kolahal kar uthi—“satyaki mara gaya. ”
arjun ne dekha ki maidan mein mrit se paDe satyaki ko bhurishrva ghasit raha hai. ye dekhkar arjun bhari asmanjas mein paD gaya. use kuch nahin sujha ki kya kiya jaye. wo shrikrishn se bola—“krishn, bhurishrva mujhse laD nahin raha hai. dusre ke saath laDnevale par kaise baan chalaun?”
arjun is prakar shrikrishn se baten kar hi raha tha ki itne mein jayadrath dvara chhoDe ge banon ke samuh akash mein chha ge. is par arjun ne baten karte karte hi jayadrath par banon ki bauchhar jari rakhi.
jyonhi arjun ne satyaki ki or muDkar dekha to paya ki satyaki zamin par paDa hua tha aur bhurishrva uske sharir ko ek paanv se dabakar aur dahine haath mein talvar lekar us par vaar karne ko udyat hi tha. ye dekhkar arjun se raha na gaya. usne usi kshan bhurishrva par tankar baan chalaya. baan lagte hi bhurishrva ka dahina haath katkar talvar samet door zamin par ja gira.
apna haath kat jane par jab bhurishrva ne krishn ki ninda ki, to arjun bola—“vriddh bhurishrva ! tumne mere priy mitr satyaki ka vadh karne ki koshish ki hai aur wo bhi us samay jabki wo ghayal aur achet sa hokar zamin par niःshastr paDa hua tha. us avastha mein tumne use talvar se marana chaha. jiske hathiyar toot chuke the, kavach nasht ho chuka tha aur jo itna thaka hua tha ki jiske liye khaDa rahna bhi dubhar tha, aise mere komal balak abhimanyu ka vadh hone par tum sabhi logon ne vijyotsav manaya tha. tumhin batao ki aisa karna kis dharm ke anusar uchit tha?”
arjun ke is prakar munhatoD javab dene par bhurishrva yuddh ke maidan mein sharon ko phailakar aur aasan jamakar baith gaya. usne vahin amran anshan shuru kar diya. ye sab dekhkar arjun bola—“viro! tum sab meri prtigya jante ho. mere banon ki pahunch tak apne kisi bhi mitr ya sathi ka shatru ke hathon vadh na hone dene ka pran mainne kar rakha hai. isliye satyaki ki raksha karna mera dharm tha. ” arjun ki ye baten sunkar bhurishrva ne bhi shanti se sir navaya aur zamin par tek diya. in baton mein koi do ghaDi ka samay beet gaya tha. sab logon ke mana karte hue bhi satyaki ne bhurishrva ka sir dhaD se alag kar diya.
satyaki ke karya ko sabne nikrisht kahkar dhikkara laDai ke maidan mein jis Dhang se bhurishrva ka vadh hua tha, use kisi ne bhi uchit nahin mana.
kaurav sena ko titar bitar karta hua arjun jayadrath ke paas akhir pahunch hi gaya, parantu jayadrath bhi koi sadharan veer nahin tha. wo suvikhyat yoddha tha. wo Datkar laDne laga. use harana arjun ke liye bhi sugam na tha. baDi der tak yuddh hota raha. donon pakshon ke veer surya ki or baar baar dekhne lage. dhire dhire pashchim mein lalima chhane lagi aur suryast ka samay bhi nazdik aane laga, parantu jayadrath aur arjun ka yuddh samapt hone ke koi lakshan nazar nahin aate the.
ye dekhkar duryodhan ke man mein anand ki lahr uthne lagi. usne socha ki ab zara si der aur hai. jayadrath to bach hi gaya aur arjun ki prtigya viphal hui si hai. jayadrath ne bhi pashchim ki or dekhte hue man mein kaha—“chalo, praan bache!”
isi beech shrikrishn ne arjun se kaha—“arjun! jayadrath surya ki taraf dekhne mein laga hai aur man mein samajh raha hai ki surya Doob gaya. parantu abhi to surya Duba nahin hai. apni prtigya puri karne ka tumhare liye yahi avsar hai. ”
shrikrishn ke ye vachan arjun ke kaan mein paDe hi the ki arjun ke ganDiv se ek tez baan chhuta aur jayadrath ke sir ko uDa le gaya. shrikrishn ne samay par hi ek chetavni arjun ko de di thi ki jayadrath ke sir ko zamin par nahin girne dena hai. arjun ne aisa hi kiya. jayadrath ke pita raja vriddhakshatr apne ashram mein baithe sandhya vandna kar rahe the ki itne mein jayadrath ka sir dhyanamagn raja ki god mein ja gira. dhyaan samapt hone par jab vriddhakshatr ki ankhen khulin aur wo uthe, to jayadrath ka sir unki god se zamin par gir paDa usi kshan buDhe vriddhakshatr ke sir ke bhi sau tukDe ho ge.
jab yudhishthir ne jaan liya ki arjun ke hathon jayadrath ka vadh ho gaya hai, to un sabke anand ki sima na rahi. iske baad to yudhishthir dune utsaah ke saath sari panDav sena ko lekar acharya dron par toot paDe. chaudahven din ka yuddh keval suryast tak hi nahin hua, balki raat ko bhi hota raha. ghatotkach bhimasen ka hiDimba se utpann putr tha. karn aur ghatotkach mein us raat baDa bhayanak yuddh hua. ghatotkach ne karn ko bhi itni piDa pahunchai thi ki wo aape mein na raha aur indr ki di hui shakti ka, jise usne arjun ka vadh karne ke uddeshya se yatnpurvak surakshit rakha tha, ghatotkach par prayog kar diya. isse arjun ka sankat to tal gaya, parantu bhimasen ka priy evan veer putr ghatotkach mara gaya. panDvon ke dukh ki sima na rahi. itne par bhi yuddh band nahin hua. dronacharya ke dhanush se banon ki teevr bauchhar se panDav sena ke asankhya veer kat katkar girte jate the.
ye dekhkar shrikrishn arjun se bole—“arjun! kuch kuchakr rachkar hi inko parast karna hoga. aaj agar parast na hue to ye hamara sarvanash kar denge. isliye kisi ko acharya ke paas jakar ye khabar pahunchani chahiye ki ashvatthama mara gaya. ” yudhishthir ne kafi soch vichar ke baad kaha ki ye paap main apne hi uupar leta hoon. is vyavastha ke anusar bheem ne gada prahar se ashvatthama naam ke ek bhari laDake hathi ko maar Dala. phir dron ki sena ke paas jakar zor se chillane laga—“mainne ashvatthama ko mara Dala hai. ”
udhar yuddh karte hue dronacharya brahmastr ka prayog karna hi chahte the ki unhonne suna ki unka putr ashvatthama mara gaya. wo vichlit ho ge. saath hi unhen is baat ki sachchai par bhi shak hua. unhonne yudhishthir se puchha. acharya dron ko vishvas tha ki yudhishthir jhooth nahin bolenge.
yudhishthir asatya bolte hue Dare, par vijay praapt karne ki lalsa mein kisi tarah ji kaDa karke jor se bole—“han, ashvatthama mara gaya. parantu ye kahte kahte ant mein dhime svar mein ye bhi kah diya ki—“manushya nahin, hathi. ” iske saath hi bheem tatha anya panDvon ne zoron ka shankhnad aur sinhnad kiya, jisse yudhishthir ke antim vachan us shor mein lupt ho ge.
yudhishthir ke munh se ye sunte hi charon or hahakar mach gaya aur isi hahakar ke beech dhrishtadyumn ne dhyanamagn acharya ki gardan par khaDg se zor ka vaar kiya. acharya dron ka sir tatkal hi dhaD se alag hokar gir paDa.
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हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी
‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।