पणवेप्पिणु आइ-भडाराहों। संसार-समुद्दुत्ताराहों॥
पणवेप्पिणु अजिय-जिणेसरहों। दुज्जय-कंदप्प-दप्प-हरहों॥
पणवेप्पिणु सभवसामियहों। तइलोक्क-सिहर-पुर-गामियहों॥
पणवेप्पिणु अहिणम्दण-जिणहों। कम्मट्ठ-दुट्ठ-रिउ-णिज्जिणहों॥
पणवेवि सुमइ-तित्थंकरहों। वय पंच-महादुद्धर-धरहों॥
पणवेप्पिणु पउमप्पह-जिणहों। सोहिय-भव-लक्ख-दुक्ख-रिणहों॥
पणवेप्पिणु सुरवर-साराहों। जिणवरहों सुपास-भडाराहों॥
पणवेप्पिणु चंदप्पह-गुरुहों। भवियायण-सउण-कप्पतरुहों॥
पणवेप्पिणु पुप्फयंत-मुणिहें। सुरभवणुच्छलिय-दिब्व-झुणिहें॥
पणवेप्पिणु सीयल-पुंगमहों। कल्लाण-झाण-णाणुग्गमहों॥
पणवेप्पिणु सेयसाहिवहों। अंचंत-महंत-पत्त-सिवहों॥
पणवेप्पिणु वासुपुज्ज-मुणिहें। विप्फुरिय-परमागम-दिसिहें॥
पणवेप्पिणु विमल-महारिसिहें। सदरिसिय-परमागम-दिसिहें॥
पणवेप्पिणु मंगलगाराहों। सानंतहों धम्म-भडारहों॥
पणवेप्पिणु संति-कुंथु-अरहँ। तिण्णि मि तिहुअण-परमेसरहों॥
पणवेप्पिणु मल्लि-तित्थंकरहों। तइलोक्क-महारिसि-कुलहरहों॥
पणवेप्पिणु मुणिसुव्वय-जिणहों। देवासुर-दिण्ण-पयाहिणहों॥
पणवेप्पिणु णमि-णेमीसरहँ। पुणु पास-बीर-तित्थंकरहँ॥
सबसे पहले संसार-समुद्र से पार करने वाले आदि भट्टारक ऋषभ जिन को प्रणाम करता हूँ। दुर्जेय काम के दर्प को हरने वाले श्री अजित जिनेश्वर को मैं प्रमाण करता हूँ। त्रिलोकी के शिखर स्वरूप शिवपुर जाने वाले संभव स्वामी को मैं प्रमाण करता हूँ। आठ कर्मरूपी दुष्ट शत्रुओं के विजेता श्री अभिनंदन जिन को मैं प्रमाण करता हूँ। महादुर्धर पाँच महाव्रतों को धारण करने वाले सुमति तीर्थंकर को मैं प्रणाम करता हूँ। संसार के लाखों दुःखरूपी ऋण का शोधन करने वाले पद्मप्रभ जिन को मैं नमस्कार करता हूँ। उत्कृष्ट देवों में भी श्रेष्ठ जिनवर सुपार्श्व भट्टारक को प्रणाम करता हूँ। भव्यजनरूपी पक्षियों के लिए कल्पतरु के समान श्री चंद्रप्रभ गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ। अपनी दिव्य ध्वनि से स्वर्ग को भी उच्छलित करने वाले पुष्पदंत मुनि को मैं प्रणाम करता हूँ। मैं महान शीतलनाथ को प्रणाम करता हूँ जो कल्याण, ध्यान और ज्ञान के उदम स्थान हैं। अत्यंत महान शिव (धाम) पाने वाले श्रेयासनाथ और प्रकाशमान ज्ञानरूपी चूडामणि से युक्त वासुपूज्य को प्रमाण करता हूँ। मैं विमल महाऋषि को प्रमाण करता हूँ, क्योंकि वे परमागम का मार्ग प्रदर्शित करने वाले हैं। जो मंगल के घर हैं ऐसे उन अनंतनाथ और धर्मनाथ भट्टारक को मेरा प्रणाम है, तीनों लोकों के परमेश्वर शांति, कुथु और अरनाथ को प्रणाम करता हूँ। मैं तीन लोक के महाऋषि और कुलधर मल्लिनाथ तीर्थंकर को प्रणाम करता हूँ। सुर और असुर जिनकी प्रदक्षिणा करते हैं, ऐसे उन मुनिव्रत जिन को मैं प्रणाम करता हूँ। नमि, नेमीश्वर, पार्श्वनाथ और महावीर तीर्थंकर को भी मैं प्रणाम करता हूँ।
- पुस्तक : पउम चरिउ (पृष्ठ 16)
- संपादक : हंसराज बच्छराज नाहटा
- रचनाकार : स्वयंभू
- प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ, काशी
- संस्करण : 1944
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