चित्रावली सौंदर्य : पाँच
chitrawali saundarya ha panch
अधर सुधा निधि बरनि न जाई, बरनत मति रसना पनियाई।
छुए न काहु अछूते राखे, प्रेम दिष्टि मुख अजहुँ न चाखे॥
विद्रुम अति कठोर औं फ़ीखे, सुरंग मृदुल दुख दायक जीके।
बिंब अरुन सो सरि न तुलाना, अति लजान बन जाइ दुराना॥
वदन मयंक जगत उजियारा, अमिरित अधर प्रानदेनिहारा।
का बरनौं का मति भई मोरी, उत्तम अघम लगाएंउ जोरी॥
ससि अमिरित देवतन्ह के जूठा, जगत आन यह अधर अनूठा।
लोभन जाहि कटाच्छ सर, मारि प्रान हरि लीन्ह।
अधर वचन तन खिन दोऊ, अमिय सोंचि जिउ दीन्ह॥
चित्रावली के अधर अमृत रस से युक्त हैं और उसका कोई अपनी बुद्धि से वर्णन नहीं कर सकता, क्योंकि ऐसा करने पर जिह्वा सूख जाती है। उन अधरों का किसी ने भी स्पर्श नहीं किया है और वे आज तक अछूते ही हैं! चित्रावली ने किसी से प्रेम नहीं किया है और उसके अधरों का किसी ने रसपान नहीं किया है। यदि इन होंठों की तुलना मूँगे से की जाए तो ये अति कठोर और फीके हैं जबकि अधरों का रंग सुंदर है और वे कोमल भी हैं। ये मन को दु.ख देने वाले हैं। बिम्बाफल की लालिमा की इन अधरों की लालिमा से तुलना नहीं हो सकती। इसीलिए वह अति लज्जित होकर वन में जाकर छिप गया। उसके चंद्र-मुख से ही संसार में प्रकाश फैलता है और उसके अधर ही संसार को प्राण देने वाले हैं। मेरी भोली-भाली बुद्धि इनका वर्णन करने में असमर्थ है। इनकी तुलना अच्छे-बुरे सभी उपमानों से कर चुका। यदि चंद्रमा से प्राप्त अमृत से इनकी तुलना की जाए तो उसे देवताओं ने झूठा कर रखा है। अत: वह इनकी तुलना के योग्य नहीं है। संसार जानता है कि ये अधर अद्भुत हैं। उसके लोचन कटाक्ष जिसे जीत लेते हैं, उसे मारकर उसके प्राणों का हरण कर लेते हैं, किंतु अधरों से निकले मधुर वचन तत्क्षण ही सामने वाले की खिन्नता दूर कर देते हैं। उसे अमृत से सींचकर और उसके प्राण लौटा देते हैं या उसे प्राण दे देते हैं।
- पुस्तक : चित्रावली (पृष्ठ 85)
- संपादक : माया अग्रवाल
- प्रकाशन : कला मंदिर
- संस्करण : 1985
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