लफ़्ज़ से मानी यूँ अलगाया नहीं करते
lafz se mani yoon algaya nahin karte
लफ़्ज़ से मानी यूँ अलगाया नहीं करते,
हम दिखावे के लिए सजदा नहीं करते।
हर किसी से माँगने जाया नहीं करते,
पेड़ सब हैं सब मगर छाया नहीं करते।
रोटियाँ करते जो हासिल बेचकर ख़ुद को,
वो कभी ईमान का सौदा नहीं करते।
गाँव में हम आज भी सुनते हैं इक क़िस्सा,
जाने वाले लौटकर आया नहीं करते।
ज़िंदगी को फिर नया माने नहीं मिलता,
यूँ किसी को टूटकर चाहा नहीं करते।
- रचनाकार : लक्ष्मण गुप्त
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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